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आठवां उद्देशक]
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के साथ बातचीत करना, खड़े रहना आदि नहीं करना चाहिये । स्त्रीसंसर्ग को दशवकालिक सूत्र में तालपुट विष की उपमा दी गई है और शतायु स्त्री के साथ भी संसर्ग करने का निषेध किया गया है। भाष्य में कहा है
अवि मायरं पि सद्धि, कहा तु एगागियस्स पडिसिद्धा।
किंपुण अणारियादि, तरुणित्थीहिं सहगयस्स ॥२३४४॥ चूणि-"माइभगिणिमादीहि अगममित्थीहि सद्धि एगाणिगस्स धम्मकहा वि काउं णं वट्टति । कि पुण अण्णाहि तरुणित्थोहिं सद्धि ।"
भावार्थ-वृद्ध माता या बहिन अादि यदि अकेली हो तो उसके साथ धर्मकथा भी करना नहीं कल्पता है तो तरुण व अन्य स्त्री के साथ अन्य कथा करने का निषेध तो स्वतः ही सिद्ध है ।
विशिष्ट शब्दों की व्याख्या इस प्रकार है
१. विहारं करेइ-यहां विहार का अर्थ साथ में रहना है । अतः ग्रामानुग्राम विहार करना अर्थ यहां नहीं समझना चाहिये ।
२. उच्चारं वा पासवणं वा परिटुवेइ–'वियारभूमि गच्छति ।'
३. अणारियं आदि–'अणारिया--कामकहा, निरंतरं वा अप्रियं कहं कहेति-कामणिठ्ठरकहाओ, एता चेव असमणपाओग्गा।'
४. उज्जाणं-'जत्थ लोगा उज्जाणियाए वच्चति, जं वा ईसि नगरस्स उक्कंठं ठियं तं उज्जाणं । 'नगरात् प्रत्यासन्नवतियानवाहनक्रीडागृहादि ।' -रायप्पसेणिय सूत्र टीका ॥
५. णिज्जाणं रायादियाण निग्गमणठाणं णिज्जाणिया, णगरनिग्गमे जं ठियं तं णिज्जाणं । एतेसु तेव गिहा कया-उज्जाण-णिज्जाण-गिहा।'
६. अटसि–प्रासादस्योपरिगृहे, प्राकारोपरिस्थसैन्यगृहे च ।
७. अट्टालयंसि-प्राकारोपरिवति-आश्रयविशेषः। 'प्राकारकोष्टकोपरिवतिमंदिरः।' नगरे पागारो, तस्सेव देसे अट्टालगो। 'युद्ध करने के बुर्ज'
८. चरियंसि–'नगरप्राकारयोरंतरे अष्टहस्तप्रमाणमार्गः।' पागारस्स अहो अट्टहत्थो रहमग्गो-चरिया ।
९. गोपुर-प्रतोलिकाद्वारः। उतरा. अ. ९ ॥ 'बलाणगं दारं दो बलाणगा पागारपडिबद्धा, ताण अंतरं गोपुरं ।'
१०. तण-तुस-भुस-'दब्भादि तणठाणं अधोपगासं तणसाला, सालिमादितुसट्टाणं तुससाला मुग्गमादियाणं भुसा।
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