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[निशीयसूत्र
१४. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से स्त्री की योनि या अपानद्वार के अग्र भाग को "भिलावा" आदि औषधि के द्वारा शोथ युक्त अर्थात् पीडायुक्त करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है।
१५. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से स्त्री की योनि या अपानद्वार के अग्र भाग को भिलावा आदि औषधि के द्वारा रोगग्रस्त करके उसे अचित्त शीतल जल या उष्ण जल से . एक बार या अनेक बार धोता है या धोने वाले का अनुमोदन करता है।
१६. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से स्त्री की योनि या अपानद्वार के अग्र भाग को भिलावा आदि औषधि के द्वारा रोग ग्रस्त करके अचित्त शीतल या उष्ण जल से धोकर किसी प्रकार का लेप एक बार या अनेक बार लगाता है या लगाने वाले का अनुमोदन करता है।
१७. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन से संकल्प के स्त्री की योनि या अपानद्वार के अग्र भाग को भिलावा आदि औषधि के द्वारा रोगग्रस्त करके अचित्त शीतल जल या उष्ण जल से धोकर किसी प्रकार का लेप लगाकर तेल यावत् मक्खन से एक बार या अनेक बार मालिश करता है या मालिश करने वाले का अनुमोदन करता है।
१८. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से स्त्री की योनि या अपानद्वार के अग्रभाग को भिलावा आदि औषधि के द्वारा रोगग्रस्त करके अचित्त शीतल या उष्ण जल से धोकर, कोई एक प्रकार का लेप लगाकर, तेल यावत् मक्खन से मालिश करके किसी सुगंधित पदार्थ से एक बार या अनेक बार सुवासित करता है या सुवासित करने वाले का अनुमोदन करता है।
१९. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से 'बहुमूल्य वस्त्र' रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है।
२०. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से 'अखण्ड वस्त्र (थान)' रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है।
२१. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से 'धोकर रंग (नील आदि) लगाए हुए वस्त्र' रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है।
२२. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से 'रंगीन वस्त्र' रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है।
२३. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से 'अनेक रंग के या चित्रित (छपाई युक्त) वस्त्र' रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है।
२४-७७. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से अपने पैरों का एक बार या अनेक बार घर्षण करता है या घर्षण करने वाले का अनुमोदन करता है, इस प्रकार तीसरे उद्देशक के सूत्र १६ से ६९ तक के आलापक के समान यहां जान लेना चाहिए यावत् जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से ग्रामानुग्राम विहार करते हुए अपना मस्तक ढंकता है या ढंकने वाले का अनुमोदन करता है।
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