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सातवाँ उद्देशक ]
बीज, हरित माला की व्याख्या नहीं है तथा वराटिका ( कौडी) शब्द की व्याख्या अधिक है । वह शब्द किसी भी प्रति में उपलब्ध नहीं है ।
इन तीन सूत्रों में तीन क्रियायें कही गई हैंप्रथम सूत्र में 'करेइ' क्रिया का कथन है । द्वितीय सूत्र में 'धरेइ' क्रिया का कथन है ।
तृतीय सूत्र में 'पिण' क्रिया का कथन है ।
यहाँ करेइ का अर्थ करना है अर्थात् बनाना है, धरेइ का अर्थ धारण करना है अर्थात् अपने पास रखना है । पिणइ का अर्थ पहनना है अर्थात् स्वयं पहनता है इत्यादि । इस प्रकार तीनों क्रियाओं के भिन्न-भिन्न अर्थ हैं ।
इसी प्रकार आगे के सूत्रों में इन तीन क्रियात्रों का प्रयोग है, उनमें भी सर्वत्र उक्त प्रर्थ ही.......
होता है ।
धातु के निर्माण प्रादि का प्रायश्चित्त
४. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए
१. अयलोहाणि वा, २. तंबलोहाणि वा, ३. तउयलोहाणि वा, ४. सीसलोहाणि वा, ५. रुप्प - लोहाणि वा, ६. सुवणलोहाणि वा करेइ, करेंतं वा साइज्जइ ।
५. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अयलोहाणि वा जाव सुवण्णलोहाणि वा धरेइ, धरेतं वा साइज्जइ ।
६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अयलोहाणि वा जाव सुवण्णलोहाणि वा पिणद्धेइ, पिणद्धेतं वा साइज्जइ ।
४. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से—
१. लोहे का कड़ा, २. तांबे का कड़ा, ६ . त्रपुष का कड़ा, ४. शीशे का कड़ा, ५. चांदी का कड़ा, ६, सोने का कड़ा बनाता है या बनाने वाले का अनुमोदन करता है ।
५. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से लोहे का कड़ा यावत् सोने का कड़ा धारण करता है या धारण करने वाले का अनुमोदन करता है ।
६. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से लोहे का कड़ा यावत् सोने का कड़ा पहनता है या पहनने वाले का अनुमोदन करता है ।
( उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त प्राता है ।)
विवेचन-धमंत फुमंतस्स संजम - छक्कायविराहणा । राउले मूइज्जइ तत्थ बंधणादिया य दोसा | "जम्हा एते दोसा तम्हा णो करेति णो धरेति, णो पिणद्धेति ॥ चूर्ण ॥
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