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सातवां उद्देशक ]
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विवेचन - चूर्णिकार के सामने जो प्रति रही होगी उसके मूल पाठ में और शब्दों के क्रम में प्रस्तुत प्रतियों से भिन्नता रही है ।
चूर्णिकार 'कु ंडल' शब्द की सर्वप्रथम व्याख्या करते हैं और भाष्यकार 'कडगाई श्राभरणा' इस प्रकार का कथन करते हैं ।
आचारांगसूत्र शु. २ . १३, में तथा श्रु. २, अ. १५ में 'हार' शब्द प्रारम्भ में है तथा आचारांगसूत्र श्रु. २, प्र. २, उ. १ में 'कुडल' शब्द प्रारम्भ में है ।
चूर्णिकार के सामने संभवतः आचारांग श्रु. २, अ २, उ. १ के समान पाठ था, ऐसा स्पष्ट प्रतीत होता है । प्रायः उन शब्दों की ही क्रमपूर्वक व्याख्या की गई है । दोनों तरह के प्रमाण मिलने के कारण इसे केवल विवक्षाभेद समझना चाहिये ।
वस्त्र-निर्मारण आदि के प्रायश्चित्त
१०. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए
१. आइणाणि वा, २. सहिणाणि वा, ३. सहिणकल्लाणाणि वा, ४. आयाणि वा, ५. कायाणि वा, ६. खोमियाणि वा, ७. दुगुल्लाणि वा, ८. तिरोडपट्टाणि वा ९. मलयाणि वा, १०. पत्तुण्णाणि
११. सुयाणिवा, १२. चिणंसुयाणि वा, १३. देसरागाणि वा, १४. अमिलाणि वा, १५. गज्जलाणि वा, १६. फालिहाणि वा, १७. कोयवाणि वा, १८. कंबलाणि वा, १९. पावराणि वा, २०. उद्दाणि वा, २१. पेसाणि वा, २२. पेसलेसाणि वा, २३. किण्हमिगाईणगाणि वा, २४. नीलमिगाईणगाणि वा, २५. गोरमिगाईणगाणि वा, २६. कणगाणि वा, २७. कणगंताणि वा, २८. कणगपट्टाणि वा, २९. कणगखचियाणि वा, ३०. कणगफुसियाणि वा, ३१. वग्घाणि वा, ३२. विवग्धाणि वा, ३३. आभरण-चित्ताणि वा, ३४. आभरण-विचित्ताणि वा करेइ, करेंतं वा साइज्जइ ।
११. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए आइणाणि वा, 'जाव' आभरण - विचित्ताणि वा धरेइ, धरेंतं वा साइज्जइ ।
१२. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए आइणाणि वा 'जाव' आभरण-विचित्ताणि वा पिणद्धेइ, पिणद्धेतं वा साइज्जइ ।
१०. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से
१. मूषक आदि के चर्म से निष्पन्न वस्त्र,
२. सूक्ष्म वस्त्र,
३. सूक्ष्म व सुशोभित वस्त्र,
४. प्रजा के सूक्ष्म रोम से निष्पन्न वस्त्र,
५. इन्द्रनीलवर्णी कपास से निष्पन्न वस्त्र,
६. सामान्य कपास से निष्पन्न सूती वस्त्र,
७. गौड देश में प्रसिद्ध या दुगुबल वृक्ष से निष्पन्न विशिष्ट कपास का वस्त्र, ८. तिरोड वृक्षावयव से निष्पन्न वस्त्र,
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