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[निशीथसूत्र
साथ प्रायश्चित्त कथन किया गया है । अतः वस्त्रों के साथ जो पायपुछण का कथन है, वह वस्त्र का ही एक उपकरण है और वह रजोहरण से भिन्न है। यदि आगे कहे गये उन १० सूत्रों में रजोहरण के स्थान पर पायपुछण शब्द का प्रयोग होता तो पायपुछण से रजोहरण अर्थ मानना उचित होता, किन्तु ऐसा नहीं है ।.... अर्थात् आगमों में जहाँ-जहाँ रजोहरण से संबंधित विषयों का कथन है वहाँ रजोहरण शब्द का ही प्रयोग हुआ है । पायपुछण शब्द का जहाँ प्रयोग है वहां रजोहरण अर्थ करना उचित नहीं है।
अतः इस दूसरे सूत्र का भावार्थ है कि “अलं थिरं धारणिज्ज' वस्त्र को टुकड़े करके नहीं परठना चाहिये। जीर्ण होने पर किसी कार्य के योग्य नहीं रहे तो परठा जा सकता है । परठने योग्य वस्त्रादि को न परठ कर उपयोग में ले तो भी प्रायश्चित्त पाता है।
दंड आदि –इस सूत्र में 'अल-थिरं" आदि विशेषण नहीं हैं। इसका कारण यह कि दंड आदि धारण करने योग्य हों अथवा न हों, अनुपयोगी होने पर उनको जिस अवस्था में हों उसी अवस्था में परठ देना या छोड़ देना चाहिये । ये चारों औपग्रहिक उपकरण हैं, अतः कारण के समाप्त होते ही उपयोग के योग्य होने पर भी ये छोड़े जा सकते हैं और अयोग्य होने पर स्थंडिल में परठना हो तो उसी अवस्था में परठ देना चाहिये। इनके टुकड़े करने से हाथ आदि में लगने की संभावना रहती है । अतः इनके लिये टुकड़े करने का निषेध और प्रायश्चित्त समझना चाहिये।
तीनों प्रकार के वस्त्र यदि जीर्ण हों तो टुकड़े करके परठने में कोई प्रायश्चित्त नहीं आता है। पात्रों में से मिट्टी और तुबे के जीर्ण या अयोग्य होने पर टुकड़े करके परठने पर प्रायश्चित्त नहीं
आता है। काष्ठ का पात्र यदि जीर्ण या अयोग्य हो तो भी उसके टुकड़े करने में हाथों में लगने की संभावना रहती है, अत: उसके लिये भी दंड आदि के समान टुकड़े नहीं करने का समझ लेना चाहिये ।
दंड आदि का अलग सूत्र करने का आशय स्पष्ट है कि ये प्रौपग्रहिक उपकरण हैं और लौटाने का कहकर भी लिये जा सकते हैं।
वस्त्र, पात्र के दो अलग सूत्र कहने का आशय भी यह है कि दोनों के परठने में तथा अप्रतिहारिकता में कुछ अंतर होता है अर्थात् वस्त्र के लेने और लौटाने का व्यवहार नहीं है और पात्र तो लेप लगाने आदि कई कारणों से कभी लेकर लौटाये भी जाते हैं । इसी अंतर के कारण इनके भिन्नभिन्न सूत्र कहे है।
परिभिदइ-तीन सूत्रों में भिन्न-भिन्न तीन क्रियाओं का प्रयोग हुआ है। अत: परिभिदइ-- फोड़ना । पलिछिदइ-फाड़ना । पलिभंजइ -तोड़ना । इस प्रकार तीनों शब्दों की विशेषता समझनी चाहिये। रजोहरण सम्बन्धी विपरीत अनुष्ठान-प्रायश्चित्त
४३. जे भिक्खू अइरेगपमाणं रयहरणं धरेइ, धरेतं वा साइज्जइ। ४४. जे भिक्खू सुहुमाइं रयहरण-सीसाइं करेइ, करेंतं वा साइज्जइ । ४५. जे भिक्खू रयहरणं कंडूसग-बंधेणं, बंधइ बंधतं वा साइज्जइ ।
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