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[ निशीथ सूत्र
२०. जो भिक्षु गृहस्थ से दंड, लाठी, अवलेखनिका या बांस की सूई की याचना करके "कल लौटा दूंगा" ऐसा कहकर ग्राज ही लौटा देता है या लौटा देने वाले का अनुमोदन करता है ।
२१. जो भिक्षु शय्यातर से दंड, लाठी, अवलेखनिका या बांस की सूई की याचना करके 'आज ही लौटा दूंगा' ऐसा कहकर कल लौटाता है या लौटाने वाले का अनुमोदन करता है । २२. जो भिक्षु शय्यातर से दंड, लाठी, अवलेखनिका या बांस की सूई की याचना करके "कल लौटा दूंगा' ऐसा कहकर प्राज ही लौटा देता है या लौटा देने वाले का अनुमोदन करता है । ( उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है | )
विवेचन-- दंड, लाठी आदि भी श्रपग्रहिक उपधि है । ये भी शय्यातर की या अन्य की वापिस लौटाने का कहकर ग्रहण की जा सकती है । एक दो दिन के लिये या ज्यादा समय के लिये भी ग्रहण की जा सकती है । यहाँ भाषा के अविवेक का प्रायश्चित्त कहा गया है ।
प्रत्यर्पित शय्यासंस्तारक संबंधी प्रायश्चित्त
२३. जे भिक्खू पाडिहारियं वा सागारिय-संतियं वा सेज्जासंथारयं पच्चप्पिणित्ता दोच्चं पि ओहं अणगुणविय अहिट्ठेइ, अहिट्ठेतं वा साइज्जइ ।
२३. जो भिक्षु अन्य गृहस्थ का या शय्यातर का शय्यासंस्तारक लौटा करके ( पुनः आवश्यक होने पर) दूसरी बार प्राज्ञा लिये विना ही उपयोग में लेता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है । ( उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है ।)
विवेचन - अन्यत्र से लाये गये शय्या संस्तारक के लिये "पाडिहारियं" शब्द का प्रयोग किया गया है और ठहरने के स्थान पर रहे हुए शय्या - संस्तारक आदि के लिए "सागारिय- संतियं" शब्द का प्रयोग किया गया है ।
यदि भिक्षु को शय्या संस्तारक की आवश्यकता न रहे तो वह उन्हें उपाश्रय में ही गृहस्थ को संभला देवे, बाद में जब कभी आवश्यकता हो तो पुनः उनकी गृहस्थ आज्ञा लेना आवश्यक होता है । यदि पुनः प्राज्ञा लिये विना ग्रहण करे तो इस सूत्र के अनुसार प्रायश्चित्त आता है ।
शय्यातर के शय्या - संस्तारक तो उसके मकान में छोड़े जा सकते हैं किन्तु अन्य गृहस्थ के घर से लाये गये शय्या - संस्तारक भी अल्प समय के लिये उपाश्रय में छोड़े जा सकते हैं। ऐसा इस प्रायश्चित्त सूत्र से और व्यवहारसूत्र उद्देशक ८ से फलित होता है । किन्तु विहार करने के पूर्व उन्हें यथास्थान पहुँचा कर सम्भलाना आवश्यक होता है, ऐसा बहत्कल्प उद्देशक ३ में विधान है और न लौटाने पर निशी. उद्देशक २ के अनुसार प्रायश्चित्त प्राता है ।
कपास [ रूई ] कातने का प्रायश्चित्त
२४. जे भिक्खू सणकप्पासओ वा, उण्णकप्पासओ वा, पोंडकप्पासओ वा, अमिल कप्पासओ वा, दोहसुत्ताई करेइ, करेंतं वा साइज्जइ ।
भिक्षु सन के पास से, ऊन के कपास से, पोंड के कपास से या अमिल के कपास से
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