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पांचवां उद्देशक]
[१३३, कातकर दीर्घ सूत्र बनाता है या बनाने वाले का अनुमोदन करता है । (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है ।)
विवेचन-"दोहसुत्तं नाम कत्तति" दीर्घ सूत्र का अर्थ है कातना अर्थात् कपास को “तकली, चर्खा" अादि से कातना ।
भाष्य गाथा सुतत्थे पलिमंथो, उड्डाहो झुसिर दोस सम्महो।
हत्थोवाघय संचय, पसंग आदाण गमणं च ॥ १९६६ ॥ इस गाथा में कातने के दोषों का संग्रह किया गया है । कातना गृहस्थ का कार्य है, इसे करने से साधु की होलना होती है । मच्छर आदि जीवों की विराधना होती है, अधिक कातने पर हाथ आदि शरीर के अवयवों में थकान आ जाती है । कातने से बुनने की प्रवृत्ति भी प्रचलित हो सकती है।
____ संग्रह आदि दोषों की भी सम्भावना रहती है । इस प्रकार इस गाथा में आत्मविराधना और संयमविराधना बताई है।
अतः भिक्षु को चर्खा कातना आदि प्रवृत्ति नहीं करनी चाहिये । ऐसी प्रवृत्ति करने पर या उसका अनुमोदन करने पर भी इस सूत्र से प्रायश्चित्त पाता है । सचित्त, रंगीन और आकर्षक दंड बनाने का प्रायश्चित्त
२५. जे भिक्खू "सचित्ताई" दारुदंडाणि वा, वेणुदंडाणि वा वेत्त-दंडाणि वा करेइ, करेंतं वा साइज्जइ।
२६. जे भिक्खू “सचित्ताई" दारुदंडाणि वा, वेणुदंडाणि वा, वेत्तदंडाणि वा धरेइ, धरतं वा साइज्जइ।
२७. जे भिक्खू "चित्ताई" दारुदंडाणि वा, वेणुदंडाणि वा, वेत्त दंडाणि वा करेइ, करेंतं वा साइज्जइ।
२८. जे भिक्खू "चित्ताई" दारुदंडाणि वा, वेणुदंडाणि वा वेत्त दंडाणि वा धरेइ, धरेतं वा साइज्जइ।
२९. जे भिक्खू “विचित्ताई" दारुदंडाणि वा, वेणुदंडाणि वा, वेत्त दंडाणि वा करेइ, करेंतं वा साइज्जइ।
___३०. जे भिक्खू "विचित्ताई" दारुदंडाणि वा, वेणुदंडाणि वा, वेत्त दंडाणि वा धरेइ, धरतं वा साइज्जइ।
२५. जो भिक्षु सचित्त काष्ठ, बांस या वेंत के दंड बनाता है या बनाने वाले का अनुमोदन करता है।
२६. जो भिक्षु सचित्त काष्ठ, बांस या वेंत के दंड धारण करता है या धारण करने वाले का अनुमोदन करता है।
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