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पांचवां उद्देशक
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नवनिर्मित ग्रामादि में प्रवेश करने का प्रायश्चित्त
३१. जे भिक्खू "णवग-णिवेसंसि" गामंसि वा, नगरंसि वा, खेडंसि वा कब्बडसि वा, मडंबसि वा, दोणमुहंसि वा, पट्टणंसि वा, आसमंसि वा, सण्णिवेसंसि वा, निगमंसि वा, संबाहंसि वा, रायहाणिसि वा अणुप्पविसित्ता असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ।
३१. जो भिक्षु नये बसे हुए १. ग्राम, २. नगर, ३. खेड, ४. कर्बट, ५. मडंब, ६. द्रोणमुख, ७. पट्टण, ८. आश्रम, ९. सन्निवेश, १०. निगम, ११. संबाह या १२. राजधानी में प्रवेश करके अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है)
विवेचन-सूत्र में आए स्थानों की व्याख्या इस प्रकार है१. 'गाम'-"कराणामष्टादशानाम् गमनीयं" 'असते वा बुद्धयादीन् गुणान्" २. 'नगरं'--"न विद्यते एकोऽपि करः।" ३. 'खेडं-.-."धूलिप्राकारपरिक्षिप्तम्" ४. 'कब्बडं'--.-"कुनगरं कर्बर्ट ।" । ५. 'मडम्बं'--"सर्वासु दिक्षु अर्धतृतीयगव्यूतमर्यादायामविद्यमान ग्रामादिकं"।
६. 'पट्टणं'-'पत्तनं द्विधा जलपत्तनं च स्थलपत्तनं चं', जलमार्ग या स्थल-मार्ग से जहां सामान-माल आता हो।
७. 'दोणमुहं'-जहां जलमार्ग और स्थलमार्ग दोनो से माल पाता हो । ८. 'निगम-वणिक् वसति । व्यापारीवर्ग का समूह जहां रहता हो ।
९. 'आसमं'-तापस आदि के आश्रम की प्रमुखता वाली वसति । अर्थात् जहां प्रथम तापसों के आश्रम बने, फिर अन्य लोग आकर बसे ऐसा स्थान ।
१०. 'सण्णिवेसं'--आचारांग श्रु. १, अ.८, उ. ६ में व निशीथ उद्देशक १२ में तथा राजेन्द्रकोष में “सन्निवेष' शब्द का अर्थ किया है। निशीथ उ. ५. व बृहत्कल्पभाष्य में "निवेश" शब्द के निर्देश से व्याख्या की गई है। व्याख्या सर्वत्र समान होने से “सन्निवेस" शब्द ही मूल पाठ में रखा गया है।
११. 'रायहाणी'--'जहां राजा का निवास हो। १२. 'संबाह-पर्वत के निकट धान्यादि संग्रह करने एवं रहने का स्थान । १३. 'घोसं'–गोपालकों की बस्ती। १४. 'अंसियं'-ग्रामादि का तृतीय चतुर्थ अंश जहां जाकर रहा हो ।
१५. 'पुडभेयणं'-अनेक दिशानों से सामान पाकर जहां बिकता हो, ऐसे मंडी स्थल के पास बसी हुई बस्ती।
१६. 'आगरं'--पत्थर तथा धातु आदि जहां उत्पन्न हों व निकाले जाएं, उसके पास की वसति ।
बृह. भाष्य. भा. २, पृ. ३४२
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