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चतुर्थ उद्देशक ]
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जो भिक्षु मल त्याग करके तीन से अधिक नावापूरकों द्वारा यदि शुद्धि करता है तो वह वीतराग की आज्ञाभंग आदि दोषों का पात्र होता है ।
तीसरे उद्देशक के अंत में मल-मूत्र त्यागने योग्य और अयोग्य भूमियों का कथन है । योग्य स्थंडिल के अभाव में दिन व रात्रि में अपने स्थान पर अपने ही भाजन में मल त्याग की विधि का निर्देश किया गया है ।
इस चतुर्थ उद्देशक के भी इन अंतिम १० सूत्रों में उच्चार- प्रस्रवण - परिष्ठापन के विषय में कहा है । किन्तु यहाँ योग्य स्थंडिलभूमि में ही जाकर मलत्याग की विधि संबंधी सूचना देते हुए प्रायश्चित्त कहा गया है ।
पारिहारिक सह भिक्षार्थ गमन प्रायश्चित्त
१२८. जे भिक्खू अपरिहारिए णं “परिहारियं" वएज्जा - एहि अज्जो ! तुमं च अहं च. एमओ असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता तओ पच्छा पत्तेयं पत्तेयं भोक्खामो वा पाहामो वा, जो तं एवं वयइ, वयंतं वा साइज्जइ । तं सेवमाणे आवज्जइ मासियं परिहारट्ठाणं उग्घाइयं ।
१२८. जो भिक्षु अपारिहारिक है, वह पारिहारिक से यह कहे कि हे आर्य ! आओ तुम और मैं एक साथ जाकर प्रशन, पान, खाद्य या स्वाद्य ग्रहण करके उसके बाद दोनों अलग-अलग खायेंगे पीयेंगे, इस प्रकार जो पारिहारिक से कहता है या कहने वाले का अनुमोदन करता है । उपर्युक्त १२८ सूत्रों में कहे गये दोषस्थानों का सेवन करने पर लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है ।
विवेचन - उद्देशक २ सूत्र ४० में पारिहारिक और अपारिहारिक शब्द का प्रयोग हुआ है । वहां इनका अर्थ क्रमशः दोष न लगाने वाला और दोष लगाने वाला है ।
किन्तु यहां क्रमशः जिसका आहार अलग है, ऐसा प्रायश्चित्त वहन करने वाला साधु और प्रायश्चित्त रहित शुद्ध साधु, ये अर्थ है
चूर्णि - " पायच्छित्तं अणावण्णो अपरिहारिओ, आवण्णो-- मासियं जाव छम्मासियं सो परिहारिओ ।"
प्रायश्चित्त के निमित्त तपश्चर्या करने वाला साधु " पारिहारिक" कहा जाता है, प्राचार्य के अतिरिक्त गच्छ के सभी साधुत्रों द्वारा वह परिहार्य होता है, उसके साथ केवल प्राचार्य ही वार्तालाप आदि व्यवहार करते हैं, गच्छ के अन्य साधु उसके साथ किसी प्रकार का व्यवहार नहीं कर सकते, इस प्रकार वह गच्छ के लिये परिहरणीय है, अतः वह पारिहारिक कहा जाता है ।
प्रश्न - यह प्रायश्चित्त वहन कौन कर सकता है ?
उत्तर- १. सुदृढ संहनन वाला हो, २. धैर्यवान् हो, ३. गीतार्थ हो,
४. समर्थ हो -
पूर्व के तीन गुण होते हुए भी बाल वृद्ध या रोगी हो तो वह असमर्थ कहलाता है । अतः जो तरुण एवं स्वस्थ हो उसे ही समर्थ समझना चाहिये ।
प्रश्न – वह कौन-सा प्रायश्चित्त वहन करता है ?
उत्तर - एकमासिक यावत् छः मासिक प्रायश्चित्त वहन करता है ।
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