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सूत्रांक
विषय
पृष्ठांक २२२
पात्र के लिए क्षेत्र सीमा उल्लंघन का प्रायश्चित्त आचारांग के पाठों से सम्बन्ध, "सपच्चवायंसि' से परिस्थिति का स्पष्टीकरण । धर्म की निन्दा करने का प्रायश्चित्त श्रत-धर्म और चारित्र-धर्म की निन्दा करने के अनेक उदाहरण, निन्दा का परिणाम एवं प्रायश्चित्त ।
२२३
अधर्म की प्रशंसा करने का प्रायश्चित्त
२२३-२२४ अधर्मप्रशंसा का स्वरूप, परिणाम और विवेकज्ञान । ९-६२ गृहस्थ के शरीर सम्बन्धी सेवा शुश्रूषा करने का प्रायश्चित्त
२२४ ५४ सूत्र और उनके विवेचन की भलावण । ६३-६४ भयभीत करने का प्रायश्चित्त
२२४-२२५ भयभीत करने का आशय, प्रायश्चित्त में विकल्प, भिक्षु के योग्य और अयोग्य कर्तव्य,
भयभीत करने के दोष, विवेकसूचन । ६५-६६ विस्मित करने का प्रायश्चित्त
२२५-२२६ विस्मित करने का स्पष्ट अर्थ, प्रायश्चित्त, कुतूहलवृत्ति, हानियां और विवेक । ६७-६८ अपनी सही अवस्था से विपरीत कहने, दिखाने का प्रायश्चित्त
२२६ अतिशयोक्तियुक्त प्रशंसा करने का प्रायश्चित्त
२२६-२२१ जो सामने हो उसके धर्म की प्रशंसा या व्यक्तित्व की प्रशंसा, प्रायश्चित्त का हेतु खुशामदीपना । विरुद्ध राज्यों की विरोधावस्था में बारंबार जाने का प्रायश्चित्त
२२७-२२८ सूत्राशय, विरोधों के विकल्प एवं विवेक ।
२२८-२२९
२२९-२३१
७१-७२ दिवसभोजन की निन्दा एवं रात्रिभोजन की प्रशंसा करने का प्रायश्चित्त
दशवकालिक के पाठों से स्पष्टीकरण, अनुमोदनदोष, निन्दा एवं प्रशंसा के उदाहरण ।
रूप वाक्य । ७३-७६ रात्रिभोजन करने का चौभंगीयुक्त प्रायश्चित्त
सूत्राशय, रात्रिभोजन से व्रतों में दोष, आगमस्थलों का संकलन, योगाशास्त्र का कथन । ७७-७८ रात्रि में आहार रखने एवं वासी खाने का प्रायश्चित्त
सूत्राशय का स्पष्टीकरण, भाष्योक्त अपवादिक कारण, संग्रहवत्ति के निषेधक आगमस्थलों का संकलन । विशिष्ट आहारार्थ अन्यत्र रात्रि में रहने का प्रायश्चित्त शब्दों की वैकल्पिक व्याख्याएं, गृहपरिवर्तन के हेतु एवं दोष ।
२३१-२३३
२३३-२३४
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