________________
चतुर्थ उद्देशक]
[१०९ देश-पार्श्वस्थ
१. सेज्जायर कुल, २. निस्सित, ३. ठवणकुल, ४. पलोयणा, ५. अभिहडेय ।
६. पुटिव पच्छा संथुत, ७. णितियग्गपिंडभोति पासत्थो ।। ४३४४ ।। १. जो शय्यादाता के घर से भिक्षा लेता है । २. जो श्रद्धालु गृहस्थों के सहयोग से जीवननिर्वाह करता है। ३. जो स्थापनाकुलों में अकारण एषणा करता है। ४. बड़े सामूहिक भोज में आहार की एषणा करता है या काच में अपना प्रतिबिंब देखता है। ५. जो सम्मुख लाया हुअा अाहार लेता है। ६. जो भिक्षा लेने के पहले या पीछे अपनी बड़ाई या दाता की प्रशंसा करता है। ७. जो निमंत्रण स्वीकार करके प्रतिदिन निमंत्रक के घर से आहारादि ग्रहण करता रहता है।
इस प्रकार के दोषों का आचरण करता है वह देश-पार्श्वस्थ है। २. ओसण्णो-अवसन्न
यह देश्य विशेषण है, इस के तीन समानार्थक पर्याय हैं१. अवसण्ण, २. प्रोसण्ण, ३. उस्सण्ण । तीनों के तीन अर्थ१. अवसण्ण-आलसी २. प्रोसण्ण-खण्डितचारित्र ३. उस्सण्ण-संयम से शून्य चूणि-पोसण्णो दोसो-अधिकतर दोषों वाला, प्रोसण्णो बहुतरगुणावराही-अनेक गुणों को दूषित करने वाला,
उयो (गतो-चुप्रो) वा संजमो तम्मि सुण्णो उस्सण्णो ---संयम से च्युत-संयम शून्य अवसन्न होता है।
समायारि वितहं ओसण्णो पावती तत्थ। -गाथापूर्वार्ध ॥ ४३४९ ॥ संयम समाचारी से विपरीत आचरण करने वाला 'अवसन्न' कहा जाता है । गाथा-आवासग-सज्झाए, पिडलेहज्झाण भिक्ख भत्तठे।
काउस्सग्ग-पडिक्कमणे, कितिकम्म णेव पडिलेहा ॥ ४३४६ ॥ आवासगं अणियतं करेति, हीणातिरित्त विवरीयं ।
गुरुवयण-णिओग-वलयमाणे, इणमो उ ओसणे ॥ ४३४७ ॥ १. आवासग-प्रावस्सही आदि दस प्रकार की समाचारी। २. सज्झाए-स्वाध्याय-सूत्र पौरुषी, अर्थ पौरुषी करना। ३. पडिलेह-दोनों समय वस्त्र पात्रादि का प्रतिलेखन करना ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org