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[निशीथसूत्र
४८. जो भिक्षु शय्यातर का घर जाने बिना; पूछे बिना या गवेषणा किये बिना ही गोचरी के लिए घरों में प्रवेश करता है या प्रवेश करने वाले का अनुमोदन करता है । (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।)
विवेचन-१. सागारियकुलं-शय्यातर का घर ।
२. अजाणिय-साधारण जानकारी अर्थात् शय्यातर का नाम क्या है तथा उसका घर किधर है ऐसा जाने बिना।
३. अपुच्छिय-विशेष जानकारी करना अर्थात् शय्यातर के गौरव की जानकारी करना, शय्यातर के नाम वाला एक ही है या अनेक है, यह जानना और उसके घर का पता जानना पृच्छना है। ऐसी पूछताछ किये बिना।
४. अगवेसिय–घर को प्रत्यक्ष देखे बिना, शय्यातर को भी प्रत्यक्ष देखे बिना उसे वय, वर्ण, चिह्न आदि से पहिचाने बिना।
परिचित क्षेत्र में नाम गोत्र व घर की जानकारी केवल पूछने से हो जाती है किन्तु अपरिचित क्षेत्र में व्यक्ति को प्रत्यक्ष देखकर उसके वय, वर्ण, आकृति को तथा मकान के आसपास का स्थल देखकर उसे स्मृति में रखना आवश्यक होता है, उसके बाद ही कोई भी भिक्षु गोचरी लेने जा सकता है।
शब्दार्थ-गाहावई-गृहस्वामी, गाहावइ-कुलं-पत्नी पुत्र आदि से युक्त गृहस्थ का घर, पिंड-अशनादि,
पिंडवायपडियाए—गृहिणा दीयमाणस्य पिंडस्य पात्रे पातः अनया 'प्रज्ञया' अर्थात् गृहस्थ के द्वारा दिये जाने वाले आहार को पात्र में ग्रहण करने की बुद्धि से। शय्यातर को नेश्राय से पाहारग्रहण का प्रायश्चित्त
जे भिक्खू सागारियणीसाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा ओभासिय-ओभासिय जायइ, जायंतं वा साइज्जइ।
४९. जो भिक्षु शय्यातर की नेश्राय से अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य मांग-मांग कर याचना करता है या याचना करने वाले का अनुमोदन करता है। (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त पाता है।)
विवेचन-इस सत्र में शय्यातर के सहयोग से ग्राहार प्राप्त करने का प्रायश्चित्त कहा गया है । अर्थात शय्यातर को गोचरी में घर बताने के लिए साथ ले जाना. घरों में 'यह वस्त बहरायो, यह वस्तु बहरागो' इस तरह बोलना, खुद के हाथ से बहराना या साधु के मांगने पर प्रेरणा करके दिलवाना इत्यादि शय्यातर की दलाली से आहार प्राप्त करने का यह प्रायश्चित्तविधान है।
सूत्र नं. ४५-४६-४७-४८ ये चार सूत्र शय्यातर सम्बन्धी हैं। चूणि तथा भाष्य में तीन सूत्रों का ही कथन है । संभवतः "गिण्हइ" का एक सूत्र लिपि प्रमाद से मूल पाठ में आ गया लगता है । विषयानुसार इसकी विशेष आवश्यकता भी प्रतीत नहीं होती है ।
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