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दूसरा उद्देशक]
गृहमुख-घर के आगे चबूतरे (चौकी) या घिरा हुआ स्थल । घर का प्रमुख द्वार-बड़ी पोल, इसमें पोल जितनी चौड़ी व कुछ लंबी जगह होती है। घर का उपद्वार-मुख्य द्वार-पोल से प्रवेश कर अंदर चलने पर छोटा दरवाजा होता है ।
गृह-एलुका-दरवाजे में दोनों तरफ ऊँची बनी हुई “साल" अर्थात् प्रमुख द्वार से प्रवेश करने पर दोनों ओर बना हुअा स्थल ।
गृह-आंगन-घर के अंदर, कमरों के बीच का चौक ।
गृह-वच्च-मकान के पीछे व आस पास की खुली भूमि या घर वालों के मलमूत्र त्यागने की भूमि ।
२. मृतक-गृह- श्मसान में जलाने के पूर्व मृतक को रखे जाने का स्थान । मृतक क्षार--दाहक्रिया के बाद जहाँ राख पड़ी रहे वह स्थान । अर्थात् दाहक्रियास्थल । मृतक-स्तूप-स्मृति के लिये बना चबूतरा आदि ।
मृतक-पाश्रय---श्मशान क्षेत्र में प्रवेश करने से पूर्व मृतक को प्राश्रय देने का अर्थात् थोड़ी देर ठहराने का स्थान ।
मृतकलयन-दाहक्रिया स्थल पर स्मृति के लिये बना हुआ चैत्यालय या चबूतरा । मृतकस्थंडिल-मृतक की जली हुई हड्डियां आदि डालने का स्थान ।
मृतकवच्च-श्मशान की अन्य खुली भूमि जो कभी किसी को जलाने या गाड़ने के उपयोग में आ सकती है।
३. गायदाहंसी-पशुओं के रोगोपशम के लिये जहाँ डांम देकर उपचार किया जाता है, ऐसा नियत स्थल ।
- तुसदाहंसि-भुसदाहंसि-तुस-धान्य के ऊपर का छिल्का या तुस युक्त धान्य । भुस-धान्य के पूलों का संपूर्ण कचरा ।
इनको को जलाने के स्थान दो प्रकार के हो सकते हैं१. खेत के पास ही अनुपयोगी तुस-भुस को जलाने का स्थान । २. कुंभकार आदि का तुस-भुस को इंधन रूप में जलाने का स्थान ।
निशीथ भाष्य में तथा प्राचारांग सूत्र. श्रु. २, अ. १० की चूर्णी में इन दोनों शब्दों की व्याख्या नहीं है "इंगालदाहसि, खारदाहंसि तथा गातदाहसि” इन तीन शब्दों की व्याख्या है।
ये दोनों शब्द आचारांग सूत्र में नहीं हैं।
निशीथ में इन दोनों शब्दों के पाठांतर रूप में "तुसठाणंसि वा भुसठाणंसि वा" ऐसा पाठ भी मिलता है । इनका अर्थ यह है कि खेत के पास इनके संग्रह करने या रखने के स्थान-"खलिहान" ।
इस प्रकार सूत्रोक्त पांचों स्थान जब रिक्त हों तो भी वहां मल-मूत्र का त्याग नहीं करना चाहिये।
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