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दूसरा उद्देशक]
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सूत्र ४०
सूत्र २२ कृत्स्न चर्म धारण करना । सूत्र २३ कृत्स्न वस्त्र धारण करना। सूत्र २४ अभिन्न वस्त्र धारण करना । सूत्र २५ तुम्बे के पात्र का, काष्ठ के पात्र का और मिट्टी के पात्र का स्वयं परिकर्म करना । सूत्र २६ दण्ड आदि को स्वयं सुधारना । सूत्र २७ स्वजन-गवेषित पात्र ग्रहण करना। सूत्र २८ परजन-गवेषित पात्र ग्रहण करना। सूत्र २९ प्रमुख-गवेषित पात्र ग्रहण करना । सूत्र ३० बलवान-गवेषित पात्र ग्रहण करना। सूत्र ३१ लव-गवेषित पात्र ग्रहण करना। सूत्र ३२ नित्य अग्रपिण्ड लेना। सूत्र ३३-३६ दानपिंड लेना। सूत्र ३७
नित्यवास वसना। सूत्र ३८
भिक्षा के पूर्व या पश्चात् दाता की प्रशंसा करना। सूत्र ३९
भिक्षाकाल के पहले आहार के लिए घरों में प्रवेश करना। अन्यतीथिक के साथ, गृहस्थ के साथ, पारिहारिक का अपारिहारिक के साथ भिक्षा के
लिए प्रवेश करना। सूत्र ४१ इन तीनों के साथ उपाश्रय से बाहर की स्वाध्यायभूमि में या उच्चार-प्रस्रवणभूमि में
प्रवेश करना।
इन तीनों के साथ ग्रामानुग्राम विहार करना । सूत्र ४३ मनोज्ञ पानी पीना, कषैला पानी परठना । सूत्र ४४ मनोज्ञ आहार खाना, अमनोज्ञ आहार परठना । सूत्र ४५ खाने के बाद बचा हुआ आहार सांभोगिक साधुओं को पूछे बिना परठना । सूत्र ४६ सागारिक पिण्ड ग्रहण करना। सूत्र ४७ सागारिक पिण्ड खाना। सूत्र ४८ सागारिक का घर आदि जाने बिना भिक्षा के लिए जाना।
सागारिक की निश्रा से आहार प्राप्त करना या उसके हाथ से लेना। सूत्र ५० शेष काल के शय्या-संस्तारक की अवधि का उल्लंघन करना । सूत्र ५१ चातुर्मास काल के शय्या-संस्तारक की अवधि का उल्लंघन करना । सूत्र ५२ वर्षा से भीजते हुए शय्या-संस्तारक को छाया में न रखना। सूत्र ५३ शय्या-संस्तारक को दूसरी बार आज्ञा लिए बिना अन्यत्र ले जाना। सूत्र ५४ प्रातिहारिक शय्या-संस्तारक लौटाये बिना विहार करना । सूत्र ५५ शय्यातर का शय्या-संस्तारकपूर्व स्थिति में किये बिना विहार करना । सूत्र ५६ शय्या-संस्तारक खोये जाने पर न ढूँढना । सूत्र ५७ अल्प उपधि की भी प्रतिलेखना न करना, इत्यादि प्रवृत्तियों का लघुमासिक
प्रायश्चित्त पाता है।
सूत्र ४२
सूत्र ४९
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