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[निशीथसूत्र
तीन घर (कमरे) से अधिक दूरी के स्थान से लाकर दिये जाने वाले प्रशनादि ग्रहण करने पर लघु मासिक प्रायश्चित्त आता है।
संख्यावाची "तीन' शब्द का प्रयोग लोकव्यवहार में तथा आगम में अनेक स्थलों पर होता है । किसी विषय की सीमा करने में या उसे निश्चित करने में इसका प्रयोग होता है । यहां तीन शब्द से सीमा की गई है। इससे ज्यादा दूर की वस्तु सामने लाकर देने में दोष लगने की संभावना रहती है। पांव परिकर्म प्रायश्चित्त
१६. जे भिक्खू अप्पणो "पाए" आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा साइज्जइ।
१७. जे भिक्खू अप्पणो “पाए" संबाहेज्ज वा पलिमदेज्ज वा, संबाहेंतं वा पलिमहेंतं वा साइज्जइ।
१८. जे भिक्खू अप्पणो “पाए" तेल्लेण वा जाव णवणीएण वा अन्भंगेज्ज वा मक्खेज्ज वा, अब्भंगेंतं वा मक्खेंतं वा साइज्जइ ।
१९. जे भिक्खू अप्पणो "पाए" कक्केण वा जाव वण्णेहिं वा उल्लोलेज्ज वा उव्वदे॒ज्ज वा, उल्लोलेंतं वा उव्वटेंतं वा साइज्जइ ।
२०. जे भिक्खू अप्पणो 'पाए' सीओदगवियडेग वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा साइज्जइ ।
२१. जे भिक्खू अप्पणो 'पाए' फुम्मेज्ज वा, रएज्ज वा, फुर्मतं वा रएंतं वा साइज्जइ ।
१६. जो भिक्षु अपने पैरों का एक बार या बार-बार 'अामर्जन' करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है।
१७. जो भिक्षु अपने पैरों का 'संवाहन'-मर्दन, एक बार या बार-बार करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है ।
१८. जो भिक्षु अपने पैरों की तेल यावत् मक्खन से एक बार या बार-बार मालिश करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है।
१९. जो भिक्षु अपने पैरों का कल्क यावत् वर्णों से एक बार या बार-बार उबटन करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है।
२०. जो भिक्षु अपने पैरों को अचित्त शीतल जल से या अचित्त उष्ण जल से एक बार या बार-बार धोता है या धोने वाले का अनुमोदन करता है।
२१. जो भिक्षु अपने पैरों को (लाक्षारस, मेहंदी आदि से) रंगता है अथवा (तेल आदि से) उस रंग को चमकाता है या ऐसा करने वाले का अनुमोदन करता है । (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।)
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