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सूत्रांक
विषय
पृष्ठांक
३३०-३३२
६७-७५ अकल्पनीय स्थानों में परठने का प्रायश्चित्त
शब्द संख्या, सूत्र संख्या एवं स्थानों का परिचय, दोषोपत्ति, अपेक्षा से इन स्थानों में परठना कल्पनीय भी, तीसरे उद्देशक से समानता, सूत्रों का आशय मल-त्याग से है । साधु का ठहरने का मकान परिष्ठापनभूमि से युक्त होना, "जुग्ग-जाण" शब्द की विचारणा, परिव्राजक के आश्रम, शाला, गृह की विचारणा। गृहस्थ को आहार देने का प्रायश्चित्त साधु का आचार, तीसरा महाव्रत दूषित एवं अन्य दोष, आचारांग में परिस्थिति से पुन: देने का विधान ।
३३२-३३३
७७-८६ पार्श्वस्थ आदि के साथ आहार लेन-देन का प्रायश्चित्त
३३३-३३४
आहार-पानी सांभोगिक के साथ ही। ८७ गृहस्थ को वस्त्रादि देने का प्रायश्चित्त ८८-९७ पार्श्वस्थ आदि से वस्त्रादि के लेन-देन करने का प्रायश्चित्त
३३५-३३६ ९८ गवेषणा किए बिना वस्त्र-ग्रहण करने का प्रायश्चित्त
३३७-३३८ सूत्रोक्त शब्दों का स्पष्टार्थ एवं सूत्राशय, गवेषणा विधि । ९९-१५२ विभूषा के लिए शरीरपरिकर्म करने का प्रायश्चित्त
३३८ १५३-१५४ विभूषा के लिए उपकरण रखने एवं धोने का प्रायश्चित्त
३३८-३४० उपधि रखने का सूत्रोक्त प्रयोजन, दोनों सूत्रों का तात्पर्य, बिना विभूषावृत्ति से धोना कल्पनीय, विशिष्ट साधन में धोना प्रकल्पनीय, अन्य आगमों के विभूषानिषेध सूचक स्थलों की सूची, सूत्र का सारांश । उद्देशक का सूत्रक्रमांकयुक्त सारांश
३४०-३४१ किन-किन सूत्रों के विषय का कथन अन्य आगमों में है या नहीं
३४१ उद्देशक १६ १-३ __ निषिद्ध शय्या में ठहरने का प्रायश्चित्त
३४२-३४४ ससागारिक शय्या का विस्तृत अर्थ एवं दोष, विवेक एवं प्रायश्चित्त, जलयुक्त शय्या की विचारणा, अग्नियुक्त शय्या की विचारणा, विराधना आदि दोष, वर्तमान में उपलब्ध
विद्युत, गीतार्थ-अगीतार्थ, मेन स्वीच एवं क्वाट्ज की घड़ियां। ४-११ इक्षु खाने चूसने सम्बन्धी प्रायश्चित्त
३४४-३४५ यह फल से भिन्न विभाग है, प्राचारांग में निषेध एवं विधान भी, खाने एवं परठने का विवेक, शब्दों की हीनाधिकता एवं निर्णय ।
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