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प्रथम उद्देशक]
[१९ २९. जे भिक्खू पाडिहारियं नहच्छेयणगं जाइत्ता नहं छिदिस्सामि त्ति सल्लुद्धरणं करेइ, करेंतं वा साइज्जइ।
३०. जे भिक्खू पाडिहारियं "कण्णसोहणगं जाइत्ता" कण्णमलं णीहरिस्सामि ति दंत-मलं वा, णह-मलं वा णीहरइ, णीहरंतं वा साइज्जइ ।
२७. जो भिक्षु लौटाने योग्य सुई को याचना करके "वस्त्र सीऊंगा" ऐसा कह कर उससे पात्र सीता है या सोने वाले का अनुमोदन करता है।
२८. जो भिक्षु लौटाने योग्य कतरणी की याचना करके "वस्त्र काटूगा" ऐसा कहकर उससे पात्र काटता है या काटने वाले का अनुमोदन करता है।
२९. जो भिक्षु लौटाने योग्य नखछेनदक की याचना करके "नख काटूगा" ऐसा कह कर उससे कांटा निकालता है या निकालने वाले का अनुमोदन करता है।
३०. जो भिक्ष लौटाने योग्य कर्णशोधनक की याचना करके "कान का मैल निकालगा" ऐसा कहकर उससे दांत या नख का मैल निकालता है या निकालने वाले का अनुमोदन करता है। (उसे गुरु मासिक प्रायश्चित्त आता है।)
विवेचन-लौटाने योग्य वस्तु के लिये आगम में "पाडिहारिय" शब्द का प्रयोग होता है। लौटाने योग्य सूई आदि ग्रहण करने के समय किसी एक कार्य का निर्देश नहीं करना चाहिए ।
____ यदि किसी एक कार्य को करने का स्पष्ट निर्देश करके सूई आदि ग्रहण किये गये हों तो उन्हें अन्य काम में नहीं लेना चाहिये।
अन्य काम करने पर दूसरा और तीसरा महाव्रत दूषित होता है । ज्ञात होने पर गृहस्थ उस साधु पर या साधुसमाज पर अविश्वास करता है, उनकी निंदा करता है तथा भविष्य में आवश्यक उपकरणों के अलाभ आदि होने की संभावना रहती है। अन्योन्य प्रदान प्रायश्चित्त
३१. जे भिक्खु अप्पणो एक्कस्स अट्ठाए सूई जाइत्ता अण्णमण्णस्स अणुप्पदेइ, अणुप्पदेतं वा साइज्जइ।
- ३२. जे भिक्खू अप्पणो एक्कस्स अट्ठाए पिप्पलगं जाइत्ता अण्णमण्णस्स अणुप्पदेइ, अणुप्पदेतं वा साइज्जइ।
३३. जे भिक्खू अप्पणो एक्कस्स अट्ठाए णहच्छेयणगं जाइत्ता अण्णमण्णस्स अणुप्पदेइ, अणुप्पदंतं वा साइज्जइ।
३४. जे भिक्खू अप्पणो एक्कस्स अट्ठाए कण्णसोहणगं जाइत्ता अण्णमण्णस्स अणुप्पदेइ, अणुप्पदंतं वा साइज्जइ ।
३१. जो भिक्षु केवल अपने लिये सूई की याचना करके लाता है और बाद में अन्य किसी साधु को देता है या देने वाले का अनुमोदन करता है।
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