________________
२२]
[निशीथसूत्र दंड, लाठी-शारीरिक परिस्थिति व क्षेत्रीय परिस्थिति से रखी जाती है। अवलेहनिका-पैरों में लगे कीचड़ आदि को साफ करने के लिये रखी जाती है।
रजोहरण या पूजणी की फलियों में डोरी डालने के लिए बांस की सूई उपयोग में आती है, यदा कदा वस्त्र पात्रादि के सिलाई के काम में भी आ सकती है।
दंड आदि का परिघट्टण-ऊपर से सफाई करना । संठवण-गांठों आदि की सफाई करना। जमावण-वक्र भाग को सीधा करना । इन उपकरणों के प्रकार, परिमाण, माप आदि की विशेष जानकारी भाष्य में दी गई है।
पात्रसंधान बंधन प्रायश्चित्त
४१. जे भिक्खू पायस्स एक्कं तुडियं तड्डेइ, तड्डेंतं वा साइज्जइ । ४२. जे भिक्खू पायस्स परं तिण्हं तुडियाणं तड्डेइ, तड्डेंतं वा साइज्जइ । ४३. जे भिक्खू पायं अविहीए बंधइ, बंधतं वा साइज्जाइ। ४४. जे भिक्खू पायं एगेण बंधेण बंधइ बंधतं वा साइज्जइ । ४५. जे भिक्खू पायं परं तिण्हं बंधाणं बंधई, बंधतं वा साइज्जइ । ४६. जे भिक्खू अइरेग बंधणं पायं, दिवड्डाओ मासाओ परेण धरेइ, धरतं वा साइज्जइ। ४१. जो भिक्षु पात्र के एक थेगली देता है या देने वाले का अनुमोदन करता है ।
४२. जो भिक्षु पात्र के तीन थेगली से अधिक देता है या देने वाले का अनुमोदन करता है।
४३. जो भिक्षु पात्र को प्रविधि से बांधता है या बांधने वाले का अनुमोदन करता है । ४४. जो भिक्षु पात्र को एक बंधन से बांधता है या बांधने वाले का अनुमोदन करता है।
४५. जो भिक्षु पात्र को तीन बंधन से अधिक बांधता है या बांधने वाले का अनुमोदन करता है।
४६. जो भिक्षु तीन से अधिक बंधन का पात्र डेढ मास से अधिक रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है । (उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है ।)
विवेचन-थेगली-टूटे भाग को ठीक करने के लिए या छिद्र को बंद करने के लिए लगाई जाती है।
४१-४२ सूत्रों का संयुक्त भाव यह है कि साधु एक भी थेगली न लगावे । अत्यन्त आवश्यक हो तो एक पात्र के एक, दो या तीन थेगली तक लगाई जा सकती है । तीन से अधिक थेगली लगाना सर्वथा निषिद्ध है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org