________________
[निशीथसूत्र
उत्तरकरण करने का प्रायश्चित्त
१४. जे भिक्खू सूईए उत्तरकरणं सयमेव करेइ, करेंतं वा साइज्जइ। १५. जे भिक्खू पिप्पलगस्स उत्तरकरणं सयमेव करेइ, करेंतं वा साइज्जइ। १६. जे भिक्खू णहच्छेयणगस्स उत्तरकरणं सयमेव करेइ, करेंतं वा साइज्जइ । १७. जे भिक्खू कण्णसोहणगस्स उत्तरकरणं सयमेव करेइ, करेंतं वा साइज्जइ ।
१४. जो भिक्षु सूई का उत्तरकरण-सुधार परिष्कार स्वयं करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है।
१५. जो भिक्षु कतरणी का उत्तरकरण-सुधार परिष्कार स्वयं करता है या करने वाले का अनुमोदत करता है।
१६. जो भिक्षु नखछेदनक का उत्तरकरण-सुधार परिष्कार स्वयं करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है।
१७. जो भिक्षु कर्णशोधनक का उत्तरकरण-सुधार परिष्कार स्वयं करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है, (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।)
. नोट-उपरोक्त सूत्रों का विवेचन प्रथम उद्देशक के सूत्र १५-१८ में देखें। प्रथम महावत के अतिचार का प्रायश्चित्त
१८. जे भिक्खू लहुसगं फरुसं वयइ, वयंत वा साइज्जइ ।
१८. जो भिक्षु अल्प कठोर वचन कहता है या कहने वाले का अनुमोदन करता है, (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।)
विवेचन-परुष भाषा में कर्कश शब्दों का प्रयोग होता है, भाषासमिति का पालन करने वाले साधु-साध्वी ऐसी परुष भाषा का प्रयोग न करे क्योंकि यह भाषा सावध होती है।
परिस्थितिवश यदि आवेश आ जाये तो वचनगुप्ति का पालन करते हुए मौन रखने का प्रयत्न करना चाहिए।
स्नेह रहित शब्द युक्त उपालम्भ, आदेश, शिक्षा तथा प्रेरणा देने के वचन, ये सब चूर्णिकार के अनुसार 'अल्प परुष वचन' हैं । यहाँ यह प्रायश्चित्त विधान ऐसे ही परुष वचनों का है। उदाहरण
१. एक साधु अपना उपकरण जहाँ पर रखकर गया था उसे वह वहाँ नहीं मिला, अतः
उसने वहाँ बैठे साधु से पूछा -- “यहाँ मैं अपना उपकरण रख कर गया था, वह कहाँ गया?" वह बोला "मुझे मालूम नहीं है।"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org