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[निशीथसूत्र
विवेचन
प्रथम सूत्र में--काष्ठदण्डयुक्त पादप्रोञ्छन बनाने का, द्वितीय सूत्र में--उसे ग्रहण करने का, तृतीय सूत्र में उसके रखने का, चतुर्थ सूत्र में उसके ग्रहण करने की आज्ञा देने का, पंचम सूत्र में उसके वितरण करने का, छठे सूत्र में उसके उपयोग करने का,
सप्तम सूत्र में किसी कारण विशेष से काष्ठ दण्डयुक्त पादप्रोञ्छन रखना पड़े तो डेढ़ मास से अधिक रखने का, और - अष्टम सूत्र में काष्ठदण्ड को खोलकर पादप्रोञ्छन से अलग करने का प्रायश्चित्त विधान है।
__ इस सूत्राष्टक में से प्रथम सूत्र के भाष्य एवं चूणि में काष्ठदण्डयुक्त पादप्रोञ्छन की उपयोगिता का सूचक "रजोहरण" शब्द अंकित है । इससे भ्रान्ति उत्पन्न होती है कि रजोहरण "तो
औधिक उपधि है-जिसे सभी प्रव्रजित भिक्षु यावज्जीवन साथ रखते हैं, अतः "काष्ठदण्डयुक्त पादप्रोञ्छन (रजोहरण)" किस प्रकार का होता है और उसका उपयोग क्या है ? इत्यादि जिज्ञासाओं का समाधान इस प्रकार है१. पादप्रोंछन
जीर्ण या फटे हुए कम्बल का एक हाथ लम्बा-चौड़ा खण्ड “पादप्रोञ्छन" कहा जाता है ।
बृह० उद्दे० १, सूत्र ४० में वस्त्र, पात्र, कम्बल और पादप्रोञ्छन, इन चार उपकरणों के नाम हैं।
इसी प्रकार अन्य आगमों में भी अनेक जगह ये चारों नाम एक साथ मिलते हैं। इससे यह ज्ञात होता है कि यह पादप्रोञ्छन भी वस्त्र, पात्र और कम्बल जितना ही आवश्यक एवं उपयोगी उपकरण है।
औपग्रहिक उपधि होते हुए भी पादपोंछन का उपयोग प्राचीन काल में अधिक प्रचलित था।
श्रमण रजोहरण से पादपोंछन को पूजकर उसपर बैठ सकते हैं, ऐसा उल्लेख उत्त० अ० १७, गाथा ७ में है, यहाँ उसे "पायकंबल" कहा गया है, टीकाकार ने पायकंबल का अर्थ 'पादपोंछन' किया है।
रात्रि में या विकाल में श्रमण को दीर्घ शंका का वेग यदि प्रबल हो और प्रतिलेखित उच्चारप्रश्रवण भूमि तक पहुंचना शक्य न हो तो उपाश्रय के किसी एकान्त विभाग में मल विसर्जन करने के समय भी पादपोंछन का उपयोग करे । यदि उस समय अपना पादपोंछन न हो तो अपने साथी श्रमण से पादप्रोञ्छन लेकर भी उस का उपयोग करे, ऐसा आचा० श्रु० २, अ० १० में विधान है।
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