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[निशीथसूत्र होता है कि विधिपूर्वक लगाई हुई किसी भी गांठ को प्रतिलेखन के लिये पुनः खोलना आवश्यक नहीं होता है क्योंकि वह सुप्रतिलेख्य होती है । बार बार गांठ खोलना एवं देना अनावश्यक प्रमाद है ।
वस्त्र खंड जोड़ना-थेगली व गांठ के दो दो सूत्र दिए गए हैं, उनके समान वस्त्रों को जोड़ने संबंधी ये दो (५२-५३) सूत्र हैं । अतः यहां पर भी एक सीवण और तीन सीवण का प्रसंग घटित होता है।
फालियं-फटे हुए । इसका दो प्रकार से अर्थ हो सकता है१. नया ग्रहण करते समय, २. लेने के बाद कभी फट जाने पर।
नया वस्त्र ग्रहण करते समय यदि वह चौड़ाई में कम हो या कम लम्बाई के छोटे छोटे टुकड़े हों तो चद्दर आदि के योग्य बनाने के लिये जोड़ना पड़ता है, जिसका निर्देश आचारांगसूत्र श्रु. २ अ. ५, उ. १ में हुआ है।
यथासंभव एक भी जगह जोड़ लगाना न पड़े ऐसा ही वस्त्र लेना चाहिये । आवश्यक होने पर भी तीन से अधिक जोड़ नहीं लगाना चाहिए, इतने जोड़ से साधु-साध्वी दोनों का निर्वाह हो सकता है।
साध्वी को चार हाथ विस्तार की चद्दर की जरूरत हो और एक हाथ के विस्तार का कपड़ा मिले तो तीन जोड़ से पूरी हो सकती है । कभी आवश्यकता से कम लम्बे टुकड़े मिलें तो भी तीन जोड़ से साधु व साध्वी दोनों का निर्वाह हो सकता है।
पूर्वोक्त सूत्र ५०, ५१ में 'गंठियं करेइ' का प्रयोग है। इसमें फटे हुए वस्त्र को गांठ देकर जोड़ने संबंधी प्रायश्चित्त है।
सूत्र ५२-५३-५४ में 'गंठेइ' क्रिया का प्रयोग है। इसमें एक सरीखे भिन्न-भिन्न वस्त्रखण्डों को सिलाई करके जोड़ने का प्रायश्चित्त है।
__सूत्र ५५ में "गहेइ" क्रिया का प्रयोग है। इसमें विजातीय वस्त्रखण्डों को जोड़ने का प्रायश्चित्त है।
इस प्रकार इन सूत्रों में फटे वस्त्रों को या वस्त्रखण्डों को जोड़ने के प्रायश्चित्त हैं ।
एक सरीखे वस्त्रखण्डों को जोड़ने का प्रायश्चित्त नहीं है और वस्त्र जैसे धागे से सिलाई करने का भी प्रायश्चित्त नहीं है, क्योंकि यह विधि है ।
असमान वस्त्रखण्डों को जोड़ने का प्रायश्चित्त है और वस्त्र से भिन्न प्रकार के धागे से सिलाई करने का प्रायश्चित्त है, क्योंकि यह अविधि है ।
अविधि से जोड़ने का और प्रविधि से सिलाई करने का प्रायश्चित्त विवेचन सूत्र ४९ के समान है।
विजातीय वस्त्र जोड़ना-इस सूत्र में प्रयुक्त जाति शब्द से वस्त्रों की अनेक जातियां ग्रहण की जा सकती हैं । यथा-ऊनी, सूती, सणी, रेशमी आदि ।
ऊनी और सूती वस्त्रों की अनेकानेक जातियां हैं । ऊनी वस्त्र-भेड़, बकरी, ऊँट आदि की ऊन से बने हुए कम्बल आदि वस्त्र । सूती वस्त्र-मलमल, लट्ठा, रेजा आदि विविध प्रकार के वस्त्र ।
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