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पृष्ठांक
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सूत्रांक विषय १२ जंगलवासी एवं जंगल में भ्रमणशील व्यक्तियों का आहार लेने का प्रायश्चित्त
शब्दों के अर्थ एवं सूत्राशय ।। १३-१४ शुद्धाचारी और शिथिलाचारी के अयथार्थ कथन का प्रायश्चित्त
साधक की भिन्न-भिन्न अवस्था, शब्दों की व्याख्या, यथार्थ जानकारी, अयथार्थ कथन के दोष, वचनविवेक।
३४६-३४७
३४७-३४८
१५ शद्धाचारी गण से शिथिलाचारी गण में जाने का प्रायश्चित्त
गणपरिवर्तन, कारण, विधि, गणपरिवर्तन का प्रमुख आशय, सूत्राशय, गण-संक्रमण में
भविष्य का पूर्ण विचार करना आवश्यक, पापश्रमण, सबल दोष । १६-२४ कदाग्रही के साथ लेन-देन करने का प्रायश्चित्त
"वग्गह वक्कंताणं" की व्याख्या और सूत्राशय, दोषों की संभावनाएं, अशिष्ट एवं असभ्य व्यवहार भी नहीं करना, परिस्थिति में गीतार्थ को अधिकार एवं प्रायश्चित्त, सूत्रों की हीनाधिकता।
३४८-३५०
२५-२६ अनार्यक्षेत्र एवं लम्बे मार्गों में विहार करने का प्रायश्चित्त
३५०-३५१ आने वाली आपत्तियां एवं दोष, परिस्थिति में छूट, सार एवं विवेकः । २७-३२ जुगुप्सित कुलों से सम्बन्धित प्रायश्चित्त
३५१-३५२ वर्जनीय अवर्जनीय कुल, सूत्र का आशय, उदारता, विचारों की साम्यता, सामाजिक मर्यादा। ३३-३५ आहार रखने के स्थान सम्बन्धी प्रायश्चित्त
३५३-३५४ पृथ्वी, छींका आदि पर आहार नहीं रखने के कारण, परिस्थिति से छूट, विवेकज्ञान । ३६-३७ गृहस्थ के सामने बैठकर आहार करने का प्रायश्चित्त
३५४-३५५ सूत्राशय का स्पष्टीकरण, उत्पन्न होने वाले दोष, तप में प्रागार, विवेकज्ञान । ३८ आचार्य उपाध्याय को सम्यक् आराधना न करने का प्रायश्चित्त
३५५ अविनय एवं विवेकज्ञान, प्रायश्चित्त और संभवित दोष, आसन को वंदन क्यों ? मर्यादा से अधिक उपकरण रखने का प्रायश्चित्त
३५६-३६८ आगमों में उपकरण वर्णन एवं उनकी किंचित् मर्यादा, चादर एवं उसके माप, चोलपट्टक माप एवं संख्या, मुखवस्त्रिका का ज्ञान-विज्ञान, कंबलविवेक विचारणा, आसन, पात्र के वस्त्र, पादप्रौंछन, निशीथिया, साध्वी के विशेष वस्त्रोपकरण, पात्र की जाति संख्या की आगमों से विचारणा एवं वर्तमान परम्पराएं, रजोहरणस्वरूप, संपूर्ण उपकरणज्ञान की तालिका, प्रोपग्रहिक उपकरण प्रागम में और व्याख्या में, प्रवत्ति में प्रचलित अतिरिक्त उपकरण, उपकरण भी परिग्रह, प्रायश्चित्तविवेक ।
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