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प्रथम उद्देशक]
५. जे भिक्खू अंगादाणं कक्केण वा, लोद्धेण वा पउमचुण्णेण वा, हाणेण वा, सिणाणेण वा, चुणेहि वा, वहिं वा, उव्वदृज्ज वा, परिवट्टज्ज वा उव्वदृतं वा परिवदृतं वा साइज्जइ ।
६. जे भिक्खू अंगादाणं सोओदगवियडेण वा, उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोवेज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोवेंतं वा साइज्जइ।
७. जे भिक्खू अंगादाणं णिच्छलेइ, णिच्छलेतं वा साइज्जइ। ८. जे भिक्खू अंगादाणं जिंघइ, जिघंतं वा साइज्जइ।
२. जो भिक्षु "अंगादान" को काष्ठ से, बांस आदि की खपच्ची से, अंगुली से या बेंत आदि की शलाका से संचालन करता है या संचालन करने वाले का अनुमोदन करता है।
३. जो भिक्षु "अंगादान" का मर्दन करता है या बार-बार मर्दन करता है या ऐसा करने वाले का अनुमोदन करता है।
४. जो भिक्षु "अंगादान" का तेल, घी, वसा या मक्खन से मालिश करता है या बार-बार मालिश करता है या ऐसा करने वाले का अनुमोदन करता है।
५. जो भिक्षु "अंगादान' का कल्क–अनेक द्रव्यों के संयोग से निर्मित लेप्य पदार्थ से, लोध्र--सुगंधित द्रव्य से, पद्मचूर्ण से, ण्हाण-उड़द आदि के चूर्ण से, सिणाण-सुगन्धित चूर्ण आदि से, चंदनादि के चूर्ण से, वर्धमान चूर्ण से उबटन-लेप या पीठी एक बार या बार-बार करता है या ऐसा करने वाले का अनुमोदन करता है ।।
६. जो भिक्षु "अंगादान" का प्रासुक शीतल जल से या उष्ण जल से प्रक्षालन [धोना] एक बार या बार-बार करता है या ऐसा करने वाले का अनुमोदन करता है।
७. जो भिक्षु "अंगादान' के अग्रभाग की त्वचा को ऊपर की ओर करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है।
८. जो भिक्षु "अंगादान' को सूघता है या सूघने वाले का अनुमोदन करता है । [उसे गुरु मासिक प्रायश्चित्त आता है । ]
विवेचन-सूत्र संख्या २ से ८ तक के प्रत्येक विषय के स्पष्टीकरण के लिए भाष्यकार ने सात दृष्टांत दिये हैं, वे इस प्रकार हैंदृष्टांत सप्तक
१. संचालन सूत्र का दृष्टांत-जिस प्रकार सोए हुये सिंह को जगाने पर वह सिंह जगाने वाले के जीवन का नाश कर देता है उसी प्रकार जो उपशांत "अंगादान" का संचालन करता है उसका ब्रह्मचर्य खंडित हो जाता है।
२. संबाधन सूत्र का दृष्टांत-जिस प्रकार शांत सर्प का कोई अंग किसी के पैर आदि से दब जाने पर वह उसे डस लेता है उसी प्रकार उपशांत अंगादान का मर्दन करने से ब्रह्मचर्य खंडित हो जाता है।
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