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सूत्रांक
१५ स्वशरीर सम्बन्धी अस्वाध्याय में स्वाध्याय करने का प्रायश्चित्त
विषय
ध्याय का प्रमुख कारण और स्वाध्याय पद्धति, आवश्यक सूत्र एवं उसके पाठ नमस्कार मन्त्र आदि, अस्वाध्याय स्वाध्याय की प्रतिलेखन विधि एवं उपसंहार ।
१६-१७ विपरीत क्रम से आगमों को वाचना देने का प्रायश्वित्त
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स्वकीय अस्वाध्याय के दो प्रकार और उनका विवेक, मासिकधर्म, देव वाणी, संवर-प्रवृत्ति, स्मरण स्तुति आदि की विचारणा, प्रति प्ररूपण दोष, विवेकज्ञान ।
१८- २१ अयोग्य को वाचना देने और योग्य को वाचना न देने का प्रायश्चित
१-१४
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शब्दों की व्याख्या सूत्राशय का स्पष्टीकरण व्यवहारसूत्रोक्त क्रम "नव वंभचेर" का तात्पर्य, "उत्तमसुर्य" का तात्पर्य, दोनों सूत्रों के सम्बन्ध से उत्सर्ग-अपवाद, व्युत्क्रम वाचना के दोष, सार रूप वाचनाक्रम की सूत्र सूची ।
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योग्य अयोग्य के लक्षण, वाचनाविधि, भाष्योक्त अयोग्य, हानि-लाभ । व्यक्त की परिभाषा, कच्चे घड़े का दृष्टांत, सूत्र संख्या वृद्धि विचारणा, छह सूत्रों का सम्बन्धित अर्थ, प्रायश्चित । वाचना देने में पक्षपात करने का प्रायश्चित्त
सूत्राशय का स्पष्टीकरण, राग-द्वेष के भाव, हानि एवं प्रायश्चित्त ।
अदत्त वाचना ग्रहण करने का प्रायश्चित्त
प्रदत्त वांचन के कारण, परिस्थितिक गम्भीर विवेक, "गिरं" का अर्थ, प्राचार्य उपाध्याय दो शब्द क्यों ? वर्तमान में गच्छ एवं आचार्य उपाध्यायों की स्थिति, शिष्य का विवेकयुक्त कर्तव्य ।
२४-२५ गृहस्य के साथ वाचना के आदान-प्रदान करने का प्रायश्चित्त
मिथ्यात्वभावित गृहस्थ, भाष्योक्त दोष, श्रमणोपासक गृहस्थ को शास्त्रवाचना सिद्धि आगामों से, लाभ की अपेक्षा से गीतार्थ का अपवाद श्राचरण । २६-३५ पार्श्वस्थ आदि के साथ वाचना के आदान-प्रदान का प्रायश्चित्त पूर्व के उद्देशों की भलावण एवं आपवादिक छूट ।
उद्देशक का सूत्रक्रमांकयुक्त सारांश
उपसंहार — उद्देशक की विशेषता
किन-किन सूत्रों का विषय अन्य आगमों में है या नहीं है
उद्देशक २०
सकपट निष्कपट आलोचक के प्रायश्चित्त
सूत्राशय, आलोचना सुनने वाले की योग्यता सूत्रों में आलोचना के दोष, आलोचनाक्रम,
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