________________
प्रस्तुत संस्करण
चिरकाल से निशीयसूत्र पर हिन्दी अनुवाद और विवेचन की अपेक्षा थी। स्वर्गीय युवाचार्य महामनीची श्री मधुकर मुनिजी ने जीवन की सान्ववेला में आगम प्रकाशन योजना प्रस्तुत की। अनेक मनीधीप्रवरों के सहयोग के कारण इस योजना ने शीघ्र ही मूर्तरूप ग्रहण किया। उनके जीवन काल में धौर स्वल्प समय में अनेक प्रागम प्रकाशित हो गये। युवाचार्य मधुकर मुनिजी के अनन्य मित्र भागमसाहित्य के मर्मज्ञ सन्तरस्न धनुयोग प्रवर्तक पण्डितप्रवर श्री कन्हैयालालजी म. 'कमल' से उन्होंने योजना के प्रारम्भ में ही सहज रूप से कहा कि मुनिप्रवर छेदसूत्रों का सम्पादन और विवेचन आपको लिखना है स्नेहमूर्ति मधुकर मुनिजी की बात को कन्हैयालालजी म. कैसे टाल सकते थे। उन्होंने स्वीकृति प्रदान की पर किसे पता था कि युवाचार्यश्री का आकस्मिक स्वर्गवास हो जाएगा। उनके स्वर्गवास से कुछ व्यवधान अवश्य आया पर सम्पादक मण्डल और प्रकाशन समिति ने यह दृढ़ संकल्प किया कि यह कार्य अवश्य ही सम्पन्न करेंगे । परिणामस्वरूप बत्तीस आगमों का प्रकाशन हो सका है ।
मुनि श्री कन्हैयालालजी म. 'कमल' जीवन के ऊपाकाल से ही श्रुतसेवा में समर्पित रहे हैं। उन्होंने कठिन श्रम कर गणितानुयोग, धर्मकथानुयोग, और चरणकरणानुयोग के विराटुकाय ग्रन्थ कई जिल्दों में प्रकाशित कर दिये हैं । द्रव्यानुयोग का प्रकाशन भी कई जिल्दों में होने जा रहा है। उन्होंने हर एक आगमों का शानदार [सम्पादन भी किया है। उन्हीं के कठिन श्रम के फलस्वरूप ही निशीष भाष्य व विशेषचूर्णि सहित आगरा से प्रकाशित हुआ था । आगमसाहित्य के मर्मज्ञ मनीषी के द्वारा निशीथ का अनुवाद और विवेचन लिखा गया है। विवेचन में लेखक की प्रकृष्ट प्रतिभा सहजरूप से प्रकट हुई है । प्राचीन ग्रन्थों के प्रालोक में उन्होंने बहुत ही संक्षिप्त में सारपूर्ण विवेचन लिखा है । विषय के तलछट तक पहुंचकर विषय को बहुत ही सुन्दर सरस शब्दावली में प्रस्तुत करना उनका स्वभाव है ।
निशीथसूत्र का मूलपाठ शुद्ध है। अनुवाद इतना अधिक सुन्दर हुआ है कि पाठक पढ़ते-पढ़ते विषय को सहज ही हृदयंगम कर लेता है । अनुवाद की सबसे बड़ी विशेषता है कि वह प्रवाहपूर्ण है । निशीथ जैसे गुरुगम्भीर रहस्य भरे आगम पर विवेचन लिखना हंसी-मजाक का खेल नहीं है। उनमें उनकी सहज बहुश्रुतता के दर्शन होते हैं । प्रस्तुत अनुवाद और विवेचन आदि के कार्य में पण्डितप्रवर श्री तिलोकमुनिजी का स्नेहपूर्ण सहकार भी मिला है। कन्हैयालालजी म. 'कमल' के नेतृत्व में रहकर उनके स्वास्थ्य की प्रतिकूलता होने से उन्होंने समर्पित होकर इस सम्पादन कार्य के लिए सहयोग प्रदान किया। कन्हैयालालजी म. 'कमल' की प्रकृष्ट प्रतिभा प्रोर तिलोकमुनिजी का कठिन श्रम, इस प्रकार मणि-काञ्चन संयोग से ग्रन्थ का सम्पादन सुन्दर और शीघ्र हो सका है।
जैन स्थानक, पाली (राज० ) होली पर्व, दि. २८-२-९१
Jain Education International
( ७१ )
For Private & Personal Use Only
-उपाचार्य देवेन्द्रमुनि
है
www.jainelibrary.org