________________
सूत्रांक
विषय
पृष्ठांक
उद्देशक-७
१५८-१५९
१५९-१६०
१६०-१६१
१६२-१६३
१६३ १६३
१६३-१६५
१६५
मैथुनसंकल्प से माला बनाने पहनने का प्रायश्चित्त माला बनाने का हेतु, सूत्र के शब्दों की विचारणा, क्रियाओं का अर्थ । "कडा" बनाने पहनने का प्रायश्चित्त कडा बनाने का सही अर्थ, उससे होने वाले दोष, 'पिणद्धेई' और 'परिभंजई' क्रिया का लिपि दोष। आभूषण बनाने का प्रायश्चित्त
सूत्रपाठ की विचारणा। १०-१२ विविध वस्त्र निर्माण एवं उपयोग का प्रायश्चित्त १३ अंगों के संचालन का प्रायश्चित्त १४-६७ शरीर परिकर्म के ५४ प्रायश्चित्त ६८-७५ सचित्त पृथ्वी आदि पर बैठने बैठाने का प्रायश्चित्त
सूत्र के शब्दों का आशय । ७६-७७ गोद में बैठाने आदि का प्रायश्चित्त ७८-७९ धर्मशाला आदि स्थानों में बैठने आदि का प्रायश्चित्त ८० चिकित्सा करने का प्रायश्चित्त ८१-८२ मनोज पुद्गल प्रक्षेपण आदि का प्रायश्चित्त ८३-८५ पशु-पक्षियों के अंगसंचालनादि का प्रायश्चित्त ८६-८९ आहार-पानी लेने देने का प्रायश्चित्त ९०-९१ वाचना लेने देने का प्रायश्चित्त ९२ विकारवर्धक आकार बनाने का प्रायश्चित्त - उद्देशक का सूत्र क्रमांक युक्त सारांश उपसंहार
उद्देशक-८ १-९ अकेली स्त्री के साथ संपर्क करने का प्रायश्चित्त
स्त्रीसंसर्ग निषेध एवं उपमा, कठिन शब्दों की व्याख्या, निष्कर्ष । रात्रि में स्त्री परिषद में अपरिमित कथा करने का प्रायश्चित्त सूत्र का आशय एवं प्रतिपक्ष तात्पर्य, अपरिमाण का स्पष्टीकरण ।
१६५-१६६
१६६ १६६-१६७
१६७-१६८
१६८
१६९
१६९ १६९-१७०
१७१-१७४
१७४-१७५
( ८१ )
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org