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सूत्रांक
विषय
पृष्ठांक
१०१-१०३
गुरु आदि की आज्ञा बिना विगय खाने का प्रायश्चित्त आज्ञा लेने का विवेक ज्ञान, विगय महाविगय का परिचय, विगयनिषेध के आगम पाठों का संकलन । एक प्रक्षिप्त सूत्र संकेत ।
३३ स्थविरों द्वारा स्थापित कुलों को जाने बिना गोचरी जाने का प्रायश्चित्त
१०३-१०४ स्थापनाकुल के विभिन्न अर्थ एवं प्रासंगिक अर्थ, अन्य शब्दों का स्पष्टार्थ एवं पारस्परिक अंतर, इन कुलों में जाने से क्या दोष ? साध्वी के उपाश्रय में अविधि से जाने का प्रायश्चित्त
१०४ विधि-अविधि का ज्ञान, आगम प्राशय । साध्वी के आने के मार्ग में उपकरण रखने का प्रायश्चित्त
१०४-१०५ अविवेक, कुतूहल या मलिन विचार नया कलह करने का प्रायश्चित्त
१०५ उपशांत कलह को उभारने का प्रायश्चित्त
१०५ कलहउत्पत्ति के मुख्य कारण और विवेक । मुह फाड़ कर या आवाज करते हुए हंसने का प्रायश्चित्त
१०६ अन्य सूत्रों के उद्धरण, उत्पन्न दोष, एक दृष्टांत द्वारा विषय का स्पष्टीकरण । ३९-४८ पार्श्वस्थ आदि को साधु देने या उनसे लेने का प्रायश्चित्त
१०६-११२ "संघाटक" का प्रासंगिक अर्थ, उत्पन्न होने वाले दोष, विवेकज्ञान । पार्श्वस्थ आदि पांचों का भाष्य चूणि के उद्धरण युक्त विस्तृत स्वरूप, सूत्रक्रम व्यत्यय की भूल, पार्श्वस्थ आदि के स्वरूप में बताई गई प्रवत्तियों का अपवाद सेवन एवं उसकी शुद्धि का विवेक ज्ञान, पाश्वस्थ
आदि कौन और कहां हो सकते ? ज्ञानविवेक । ४९-६२,६३ सचित पदार्थों से लिप्त (खरडे) हाथादि से आहार लेने का एवं बिना खरडे हाथ आदि से आहार लेने का प्रायश्चित्त
११२-११६ पृथ्वीकाय की विराधना, अपकाय की विराधना, वनस्पति की विराधना एवं पश्चात् कर्म दोष, प्रथम पिंडेषणा, शब्दों की व्याख्या, सूत्रसंख्या की विचारणा, “पिट्र" शब्द की विशेषता, तत्संबंधी भ्रान्ति और उसका तर्क एवं प्रमाणों द्वारा संशोधन, दशवैकालिक के शब्दों से तुलना एवं समन्वय, "उक्कटठ" शब्द की विचारणा, इक्कीस कहने का प्रक्षिप्त पाठ एवं
पांच अतिरिक्त शब्द और उनकी अनावश्यकता । ६४-११७ साधुओं द्वारा परस्पर शरीरपरिकर्म करने का प्रायश्चित्त
११७-११८ ५४ सूत्रों का अतिदेश, चूणि में ४१ संख्या कहने का तात्पर्य, ५४ सूत्रों की तालिका ।
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