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४० तत्त्वार्थ सूत्र
मार्गणाओं के मूलभेद १४ हैं तथा उत्तरभेद ६२ हैं -)
१. गति चार - (१) नरकगति (२) तिर्यचगति (३) मनुष्यगति (४) देवगति ।
२. इन्द्रिय पाँच - (१) स्पर्शन (२) रसना (३) घ्राण (४) चक्षु (५) श्रोत्र ।
. ३. काय छह - (१) पृथ्वीकाय (२) अप्काय (३) अग्निकाय (४) वायुकाय, (५) वनस्पतिकाय, (६) त्रसकाय' ।
४. योग तीन - (१) मनोयोग (२) वचनयोग (३) काययोग । ५. वेद तीन - (१) स्त्रीवेद (२) पुरुषवेद (३) नपुंसकवेद ।
६. कषाय चार - (१) क्रोध (२) मान (३) माया ४) लोभ . ७. ज्ञान आठ - (१) मति (२) श्रुत (३) अवधि (४) मनःपर्यव (५) केवलज्ञान (६) मतिअज्ञान (७) श्रुत अज्ञान (८) कुअवधिज्ञान (विभंगज्ञान) ।
८. संयम सात - (१) सामायिक चारित्र (३) छेदोपस्थापनीय चारित्र (३) परिहारविशुद्धि चारित्र (४) सूक्ष्मसंपराय चारित्र (५) यथा-ख्यात चारित्र (६) देशसंयम (७) अविरत संयम ।
९. दर्शन चार - (१) चक्षुदर्शन (२) अचक्षुदर्शन (३) अवधिदर्शन (४) केवलदर्शन ।
१०. लेश्या छह - (१) कृष्ण (२) नील (३) कापोत (४) तेजो (५) पद्म (६) शुक्ल ।
११. भव्य दो - (१) भव्य और (२) अभव्य ।
१२. सम्यक्त्व छह (१) क्षायिक (२) क्षायोपशमिक (३) औपशमिक (४) मिश्र (५) सास्वादन (६) मिथ्यात्व ।
१३. संज्ञी दो - (१) संज्ञी (२) असंज्ञी । १४. आहारक दो - (१) आहारक (२) अनाहारक।
इन चौदह (उत्तरभेद ६२) मार्गाणास्थानों में जीव की अवस्थिति पाई जाती है ।
__ मार्गाणास्थानों के समान गुणस्थान भी चौदह हैं । इनका संक्षिप्त स्वरूप इस प्रकार है - . (१) मिथ्यात्व गुणस्थान - विपरीत श्रद्धा एवं विश्वास । सर्वज्ञकथित
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