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आगम वचन
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दुविहे नाणे पण्णत्ते
पच्चक्खे चेव परोक्खे चेव । पच्चक्खे नाणे दुविहे पण्णत्ते केवलणाणे चेव, णोकेवलणाणे चेव णो केवलणाणे दुविहे पण्णत्तेओहिणाणे चेव, मणपज्जवणाणे चेव ।
परोक्खणाणे दुविहे पण्णत्ते आभिणिबोहिय णाणे
( ज्ञान दो प्रकार का है प्रत्यक्ष ज्ञान दो प्रकार का है
ज्ञानों का प्रमाणत्व
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तत् प्रमाणे ।१०।
आद्ये परोक्षम् ।११।
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अध्याय १ : मोक्षमार्ग ४५
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चेव सुयणाणे चेव ।
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(१) केवलज्ञान और (२) नोकेवलज्ञान)
नोकेवलज्ञान दो प्रकार का है
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- स्थानांग सूत्र, स्थान २, उ. १, सूत्र ७१
(१.) प्रत्यक्ष और ( २ ) परोक्ष ।
(१) अवधिज्ञान और (२) मनःपर्यवज्ञान ।
परोक्षज्ञान दो प्रकार का है।
(१) आभिनिबोधिकज्ञान और (२) श्रुतज्ञान । )
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प्रत्यक्षमन्यत् ।१२।
वह पाँचो ज्ञान प्रमाण हैं । ( तथा वह प्रमाण दो प्रकार का है । )
आदि के दो ज्ञान (मति और श्रुत) परोक्ष है ।
अन्य (मति और श्रुत से अतिरिक्त - अर्थात् - अवधि, मनः पर्यव और केवलज्ञान) प्रत्यक्ष (प्रमाण) है ।
विवेचन प्रस्तुत तीनों सूत्रों में ज्ञान के प्रमाणत्व की चर्चा की गई है । बताया गया है कि वे पाँचो ही ज्ञान प्रमाण हैं । साथ ही सूत्र में
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