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३४० तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ७ : सूत्र २९-३०
(२) अप्रत्यवेक्षित-अप्रमार्जित आदान-निक्षेप- बिना भली भाँति देखे और प्रमार्जन किये ही वस्तुओं (उपकरणों) को उठाना-रखना ।
(३) अप्रत्यवेक्षित-अप्रमार्जित संस्तार-उपक्रम- बिना भलीभाँति देखे और प्रमार्जन किये ही संस्तारक पर बैठ जाना, लेट जाना ।
(४) अनादर - श्रद्धा-भक्ति-रुचिपूर्वक पौषध न करना । (५) स्मृति अनुपस्थापन - पौषध के पाठ, काल आदि विस्मृत हो
जाना ।
आगम वचन
..भोयणतो समणोवासएणं पंच अइयारा तं जहा-सचित्ताहारे सचित्तपडि बद्धाहारे
अप्पउलिओसहिभक्खणया दुप्पउलिओसहिभक्खणया तुच्छोसहिभक्खणया । .
- उपासकदशांग, अ.१ (श्रमणोपासक के भोजन (उपभोग-परिभोग व्रत) के पाँच अतिचार यह हैं (१) सचित्ताहार, (२) सचित्त प्रतिबद्धाहार, (३) अपक्वाहार (४) दुष्पक्वाहार
और (५) तुच्छौषधिभक्षणता ।) उपभोग-परिभोगव्रत के अतिचार
सचित्तसम्बद्धसंमिश्राभिषवदुष्पक्वाहाराः ।३०।
(१. सचित्त आहार, २. सचित्तसम्बद्ध आहार, ३. सचित्तसंमिश्र आहार ४. अभिषव आहार और ५. दुष्पक्वाहारा - यह पाँच अतिचार उपभोगपरिभोग परिमाण व्रत के हैं ।) .
विवेचन - सचित्त वनस्पतिकाय का भक्षण करना, सचित्ताहार है। सचित्त से लगी हुई स्पर्शित वस्तु का आहार सचित्तसंबद्धाहार है।
सचित्त से मिश्रित वस्तु, जैसे कच्चे तिल के लड्डू आदि सचित्तसंमिश्र आहार है ।
इन्द्रियों को पुष्ट करने वाला गरिष्ठ, रसयुक्त भोजन एवं मादक द्रव्य का सेवन करना अभिषव आहार है ।
योग्य रीति से न पके हुए दुष्पक्व भोजन का आहार दुष्पक्वाहार है।
आगम के क्रमानुसार तीसरा अपक्वाहार है, सचित्त वस्तु का त्याग होने पर बिना पके फल शाक आदि खाना! चौथा दुष्पक्वाहार-आधे पके फल आदि तथा पाँचवाँ तुच्छौषधिभक्षण है-जिसका अर्थ है ऐसी वस्तु जिसमें खाने योग्य कम, फेकने योग्य अधिक भाग हो ।
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