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बन्ध तत्त्व ३६९ बंधी क्रोध - मान-माया - लोभ, अप्रत्याख्यानी क्रोध-मान- माया - लोभ, प्रत्याख्यानी क्रोध - मान-माया - लोभ और संज्वलन क्रोध - मान-माया - लोभ । नोकषायमोहनीय कर्म नौ प्रकार का कहा गया है (१) स्त्रीवेद (२) पुरुषवेद (३) नपुंसकवेद (४) हास्य (५) रति (६) अरित (७) भय (८) शोक और ( ९ ) जुगुप्सा । मोहनीयकर्म की उत्तर प्रकृतियां
दर्शनचारित्रमोहनीयक षायनो कषायवे दनीयाख्यास्त्रिद्विषोडशनवभेदाः सम्यक्त्वमिथ्यात्वतदुभयानि कषायनो कषायावनन्तानुबन्ध्यप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानावरणसं ज्वलनविकल्पाश्चैकशः क्रोधमानमायालोभा हास्यरत्यरतिशोकभयजुगुप्सास्त्रीपुनपुंसक वेदाः ।१०।
दर्शनमोह, चारित्रमोह, कषायवेदनीय और नोकषायवेदनीय (मोहनीयकंर्म के यह प्रमुख चार भेद हैं ।) इनके क्रमशः तीन, दो, सोलह और नौ प्रकार है ।
दर्शनमोहनीय के तीन भेद हैं (३) उभय अर्थात् सम्यक्मथ्यात्व ।
(१) सम्यक्त्व (२) मिथ्यात्व और चारित्रमोहनीय के (प्रमुख) दो भेद हैं- (१) कषायमोहनीय और ९२ ) नोकषायमोहनीय |
कषायमोहनीय के सोलह भेद हैं- (१-४) अनन्तानुबन्धी क्रोध - मान - माया -लोक्ष, (५ - ८) अप्रत्याख्यानावरण क्रोध - मान-माया-लोभ, (९१२) प्रत्याख्यानावरण क्रोध - मान-माया - लोभ, (१३ - १६) संज्वलन क्रोधमान - माया - लोभ ।
नोकषायमोहनीय के नौद भेद हैं (१) हास्य (२) रति (३) अरित (४) शोक (५) भयं (६) जुगुप्सा (७) स्त्रीवेद (८) पुरुषवेद (९) नपुंसकवेद । विवेचन प्रस्तुत सूत्र में मोहनीय कर्म की उत्तरप्रकृतियाँ बताई गई हैं। सूत्र में मोहनीय कर्म के पहले दो भेद बताय हैं - (१) दर्शनमोहनीय और (२) चारित्रमोहनीय । पुनः चारित्रमोहनीय के दो भेद किये गये है - (१) कायमोहनीय और (२) नोकषायमोहनीय । कषायमोहनीय के सोलह भेद हैं और नोकषाय के नौ (९) भेद हैं ।
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विवेचन में मोहनीय कर्म की उत्तरप्रकृतियाँ बताई गई प्रस्तुत सूत्र है। सूत्र में मोहनीय कर्म के पहले दो भेद बताये हैं- (१) दर्शनमोहनीय और (२) चारित्रमोहनीय । पुनः चारित्रमोहनीय के दो भेद किये गये हैं (१) कषायमोहनीय और (२) नोकषायमोहनीय । कषायमोहनीय के सोलह भेद है और नोकषाय के नौ (९) भैद है ।
संक्षेप में दर्शनमोहनीय की ३ उत्तरप्रकृतियाँ है और चारित्र
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