________________
४१४ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ९ : सूत्र ९ चर्या (शय्या) (८) वध (९) रोग (१०) तृणस्पर्श और (११) मल (जल्ल)।
दंसणमोहणिज्जे णं भंते ! कम्मे कति परीसहा समोययरन्ति ? गोयमा ! एगे दंसणपरीसहे समोयरइ । चरित्तमोहणिज्जे णं भंते ! कम्मे कति परीसहा समोयरंति ? गोयमा ! सत्त परीसहा समोयरन्ति, तं जहाअरती अचेल इत्थी निसीहिया जायणा य अक्कोसे । सक्कारपुरकारे चरित्तामाहंमि सत्ते ते। (भगवन ! दर्शनमोहनीय कर्म से कितने परीषह होते हैं ? . गौतम ! एकदर्शन परीषह ही गिना जाता है। भगवन ! चारित्रमोहनीय कर्म से कितने परीषह होते हैं ?
गौतम ! सात परीषह होते हैं - (१) अरति (२) अचेल (३) स्त्री (४) निषद्या (५) याचना (६) आक्रोश और (७) सत्कार-पुरस्कार
अंतराइए ण भंते ! कम्मे कति परीसहा समोयरंति ? गोयमा ! एगे अलाभारीषहे समायरइ । (भगवन ! अन्तरायमकर्म में कितने परीषह होते हैं ? गौतम ! एक अलाभपरीषह होता है।) सत्तविहबंधगस्स णं भंते ! कति परीसहा पण्णत्ता ?
गोयमा ! बावीस परसीहा पण्णत्ता, वीसं पुणवेदेइ, जं समयं सीयपरीसहं वेदेति णो तं समयं उसिणपरीसह वेदेइ, जं समयं उसिणपरीसह वेदेइ णों तं समय सीयपरीसहं वेदेइ, जं समयं चरियापरीसहं वेदेति णो तं समयं निसीहियापरीसहं वेदेति, जं समयं निसीहियापरीसहं वेदेइ णो तं समयं चरियापरीसहं वेदेइ ।
....एवं अविहस्स बंधगस्स वि सत्त विहस्स बंधगस्स वि। ( भगवन् ! सात प्रकार के कर्मबंध वालों के कितने परीषह होते हैं?
(गौतम ! बाईसों परीषह ही होते हैं । किन्तु एक काल में वेदन (अनुभव) बीस का ही होता है। क्योंकि शीत-उष्ण तथा चर्या-निषद्या (इन दोनों युगलों) में से एक-एक का ही वेदन संभव है ।
.. इसी प्रकार आठ प्रकार के कर्म बंधकों को भी होते है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org