________________
४६२ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय १० : सूत्र. १ .
(मोहनीय कर्म को नष्ट करने वाले अर्हन्त के इसके पश्चात् निम्नलिखित कर्मों के अंश एक साथ नष्ट होते हैं -ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, अन्तराय।
__सबसे प्रथम पूर्व आनुपूर्वी के अनुसार अट्ठाईस प्रकार के मोहनीय कर्म को नष्ट करता है। (इसके पश्चात्) पाँच प्रकार के ज्ञानावरणीय, नौ प्रकार के दर्शनावरणीय और पाँच प्रकार के अन्तराय - इन तीनों ही कर्मों को एक साथ नष्ट करता है। केवलज्ञान-दर्शन उपलब्धि की प्रक्रिया - ..
मोहक्षयाज्ज्ञानदर्शनावरणान्तराय क्षयाचकेवलं ।। .
मोहनीय कर्म के क्षय होने क पश्चात् ज्ञानावरण-दर्शनावरण-अन्तराय कर्म के क्षय होने पर कैवल्य की प्राप्ति होती है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में केवल्य-प्राप्ति की प्रक्रिया बताई गई है। कैवल्य का अर्थ है केवलज्ञान और केवलदर्शन । 'केवल' विशेषण का अर्थ है जो अकेला ही हो, निरालम्ब हो, किसी की सहायता की जिसे अपेक्षा न हो । तथा साथ ही जो तीनों लोकों और तीनों कालों के समस्त द्रव्य और पर्यायों को जानता हो, जिस ज्ञान से कुछ भी छिपा न रहे। सामान्य भाषा में इसे सर्वज्ञता और सर्वदर्शिता कहा जाता है ।
प्रस्तुत सूत्र में कैवल्य-प्राप्ति का क्रम बताते हुए कहा है कि पहले मोहनीयकर्म का सम्पूर्ण नाश होता है और फिर उसके उपरान्त ज्ञानावरण, दर्शनावरण तथा अन्तराय इन तीनों कर्मों का युगपत-एक साथ नाश होता है। और इन चारों कर्मों के सम्पूर्ण क्षय होनेपर कैवल्य दशा प्रकट होती है।
यह चारों कर्म घातीकर्म है । घाती कर्म का अभिप्राय है जो आत्मा के निज गुणों का घात करे, उन्हे आवरित करे ।
मोहनीयकर्म आत्मा की सम्यक्त्व और चारित्र शक्ति का घात करता है । ज्ञानावरण ज्ञान शक्ति का, दर्शनावरण दर्शन शक्ति का और अन्तरायकर्म आत्मा की वीर्यशक्ति को बाधित करता है।
__ मोहनीयकर्म के क्षय से आत्मा को अनन्त सुख और क्षायिक सम्यक्त्व की उपलब्धि होती है। ज्ञानावरण-दर्शनावरण के क्षय से सर्वज्ञता और सर्वदर्शित्व की तथा वीर्यान्तराय के क्षय से अनन्तवीर्य की उपलब्धि होती
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org