Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Kevalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Kamla Sadhanodaya Trust

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Page 494
________________ ४७० तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय १० : सूत्र ७ ठाणांग में अलोक में गति न करने के हेतु बताये हैं । वहाँ कहा गया है चउहिं ठाणे हिं जीवा य पोग्गला य णो संचातेति बहिया लोगंता गमणाताते, तं जहा-गति अभावेणं णिरुव्वगहताते लुक्खाते लोगाणुभावेणं। - स्थानाग ४, उ. २, सू. ३३७ (चार कारणों से जीव और पुद्गल लोक के बाहर नहीं जा सकते यथा (१) आगे गति का अभाव होने से, (२) उपग्रह (धर्मास्तिकाय) का अभाव होने से, (३) लोक के अन्त भाग के परमाणुओं के रूक्ष होने से और (४) अनादि काल का स्वभाव होने से। इस प्रकार इन चार कारणों से मुक्त जीव लोकान्त (सिद्ध स्थान) में ही जाकर ठहर जाता है। विशेष - दिगम्बर परम्परामान्य तत्वार्थसूत्र में 'धर्मास्तिकायाभावात्' (धर्मास्तिकाय का अभाव होने से मुक्त जीव लोकान्त में अवस्थित हो जाते हैं) इस स्वतन्त्र सूत्र की रचना द्वारा इसी तथ्य को व्यक्त किया गया है। आगम वचन - खेत्त काल गई लिंग तित्थे चरित्तें ___ - भगवती, श. २५, उ. ६, सू. ७५१ पत्तेयबुद्धसिद्धा बुद्धबोहियसिद्धा - नन्दीसूत्र, केवलज्ञानाधिकार नाणेखेत्त अन्तर अप्पाबहुयं - भगवती श.२५, उ.६,सू. ७५१ सिद्धाणोगाहणा संखा - उत्तरा. ३६/५३ (क्षेत्र, काल, गति, लिंग, तीर्थ, चारित्र, प्रत्येकबुद्धसिद्ध, बुद्धबोधित सिद्ध, ज्ञान, क्षेत्र, अन्तर, अल्पबहुत्व, अवगाहना और संख्या-इन अनुयोगों से सिद्धों में भी भेद साधने चाहिए । सिद्धों के विकल्प अथवा भेद क्षेत्रकालगतिलिंगतीर्थचारित्रप्रत्यकबुद्धबोधितज्ञानावगाहनान्तरसंख्याल्पवहुत्वतः साध्याः । ७। (१) क्षेत्र (२) काल (३) गति (४) लिंग (५) तीर्थ (६) चारित्र (७) प्रत्येकबुद्धबोधित (८) ज्ञान (९) अवगाहना (१०) अन्तर (११) संख्या और (१२) अल्पबहुत्व - इन बारह विकल्पों से सिद्धों में भी भेद साधने चाहिए अर्थात् इन विकल्पों या कारणों से सिद्धों में भी भेद किये जा सकते है । विवेचन -यदि सामान्य दृष्टि से विचार किया जाय तथा सिद्धों के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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