Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Kevalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Kamla Sadhanodaya Trust

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Page 497
________________ मोक्ष ४७३ ही होता है और केवलज्ञानी ही मुक्त होते है, किन्तु भूतकाल की अपेक्षा से विचार किया जाय तो दो ज्ञान (मति - श्रुत), तीन ज्ञान (मति, श्रुत, अवधि, ) चार ज्ञान (मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव) वाले भी सिद्ध होते हैं । (९) अवगाहना अवगाहना की दृष्टि से सिद्ध जीवों में भी भेद है । अवगाहना ऊँचाई को कहा जाता है । सिद्ध जीवों की उत्कृष्ट अवगाहना ३३३ धनुष और ३२ अंगुल तथा जघन्य अवगाहना १ हाथ ८ अंगुल होती है। इसके मध्य में अनेक प्रकार की अवगाहना हो सकती है। यह आत्म प्रदेशों की दृष्टि से है । (१०) अन्तर अन्तर का अभिप्राय है - व्यवधान, अवकाश । जब प्रति समय सिद्ध होते रहते हैं तो वे निरन्तर सिद्ध कहलाते है । इस निरन्तरता में बाधा ही अन्तर कहलाती है। यह अन्तर छह माह से अधिक का नहीं पड़ता । यानी एक जीव के सिद्ध होने के छह महिने के अन्दर - अन्दर दूसरा जीव सिद्ध हो ही जायेगा, ऐसा निमय है । ऐसे सिद्ध जीव सान्तर सिद्ध कहलाते है । (११) संख्या - एक समय में कम से कम एक जीव और अधिक से अधिक १०८ जीव सिद्ध हो सकते है 1 उत्तराध्ययन सूत्र (३६/५१ - ५४) में एक समय में विभिन्न अपेक्षा से कितने सिद्ध हो सकते हैं, इसका गणना (संख्या) दी गई है, वह इस प्रकार है - (१) तीर्थ की विद्यमानता में १ समय में १०८ तक सिद्ध हो सकते (२) तीर्थ का विच्छेद होनेपर १ समय में १० तक सिद्ध हो सकते (३). तीर्थकर १ समय में एक साथ २० तक (४) स्वयंबुद्ध १ समय में १०८ तक (५) अतीर्थकर (सामान्य केवली ) १ समय में १०८ तक है tic tic (६) प्रत्येकबुद्ध १ समय में ६ तक (७) स्वलिंगी १ समय में १०८ तक (८) स्वलिंग १ समय में १०८ तक (९) अन्यलिंगी १ समय में १० तक (१०) गृहस्थलिंगी १ समय में ४ तक (११) स्त्रलिंगी १ समय में २० तक (१२) पुरुषलिंगी १ समय में १०८ तक Jain Education International " For Personal & Private Use Only " " "" " " " www.jainelibrary.org

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