Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Kevalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Kamla Sadhanodaya Trust

View full book text
Previous | Next

Page 498
________________ ४७४ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय १० : सूत्र ७ (१३) नपुंसकलिंगीं १ समय में १० तक सिद्ध हो सकते है । (१४) जघन्य २ हाथ ही अवगाहना वाले १ समय में ४, मध्यम अवगाहना वाले १०८ और उत्कृष्ट ५०० हाथ को अवगाहना वाले २ जीव सिद्ध होते हैं । सिद्धगति में इन जीवों (मनुष्यों) की अवगाहना २ / ३ रह जाती है। (१२) अल्प - बहुत्व जघन्य और उत्कृष्ट तथा मध्य की स्थितियों पर विचार करना अल्प - बहुत्व है । जैसे- पुरुषलिंगी एक समय में कितने सिद्ध होते हैं और स्त्रीलिंगी कितने ? इसी प्रकार क्षेत्र की अपेक्षा विचार करना कि भरतक्षेत्र से कितने जीव सिद्ध होते हैं और विदेहक्षेत्र से कितने ? संक्षेप में ऊपर कही गई ११ विकल्पों तथा शास्त्रोक्त अन्य विकल्पों की अपेक्षा न्यूनाधिकता का विचार करना अल्प - बहुत्व है । उदाहरण के लिए क्षेत्र - सिद्धों में जन्म - सिद्ध और संहरण - सिद्ध-दो प्रकार के सिद्ध होते हैं । जन्म - सिद्ध का अभिप्राय है, जिन जीवों (मनुष्यों) का जन्म १५ कर्मभूमियों में से किसी एक में हो और वे साधना करके सिद्धि प्राप्त करें । - संहरण-सिद्ध का अभिप्राय है - कोई देव आदि किसी मनुष्य को उसके जन्म-स्थान (जन्म भूमि) से संहरण कर किसी अन्य क्षेत्र में पहुँचा दे और वह मनुष्य वहीं (संहरण - क्षेत्र में ही) मुक्ति प्राप्त करे । इस प्रकार अनेक अपेक्षाओं से हीनाधिकता का विचार करना ही अल्प - बहुत्व द्वार अथवा विकल्प है। उपसंहार इस प्रकार शास्त्र में मोक्षमार्ग का वर्णन हुआ है। नव तत्त्वों, छह द्रव्यों, जीव के विभिन्न भावों का इसमें विवेचन है । सम्यग्दर्शनज्ञान - चारित्र और तप का विवरणात्मक विश्लेषण है । तत्त्वों तथा अर्थों का विवेचन करने वाले और संपूर्ण मोक्षमार्ग को प्रदर्शित करने वाले, सूत्रबद्ध रचनास्वरूप वाले (इस शास्त्र का तत्त्वार्थसूत्र नाम सार्थक और सटीक है ।) ॥ दशवां अध्याय समाप्त || || वाचक उमास्वाति विरचित तत्त्वार्थसूत्र संपूर्ण ॥ Jain Education International *** For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 496 497 498 499 500 501 502 503 504