Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Kevalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Kamla Sadhanodaya Trust

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Page 490
________________ ४६६ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय १० : सूत्र - ४ विवेचन - इस सूत्र का सामान्य अभिप्राय यह है कि मुक्त जीव में केवलसम्यक्त्व, केवलज्ञान, केवलदर्शन और केवलसिद्धत्व- इन चार भावों के अतिरिक्त अन्य किसी भी प्रकार के भाव नहीं रहते । इस बात का संकेत सूत्र में 'औपशमिकादि' शब्द से किया गया है। अध्याय २ के प्रथम सूत्र में जो औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक और पारिणामिक-यह पाँच प्रकार के भाव बताये हैं; मुक्त जीव में इनमें से औपशमिक, क्षायोपशमिक तथा औदयिक. भाव तो रहते ही नहीं, क्षायिक भाव (यद्यपि यह संज्ञा कर्मों के क्षय सापेक्ष है) फिर भी मुक्त दशा में इन भावों का अभाव नहीं होता, जैसे क्षायिक सम्यक्त्व .। सूत्र में कहा गया केवलसम्यक्त्व और क्षायिकसम्यक्त्व एक ही अर्थ को धोतित करते हैं। • पारिणामिक भावों में अभव्यत्व तो इसलिए असंभव है कि अभव्य को तो मुक्ति ही नहीं होती, भव्यत्वभाव इसलिए नहीं रहता कि उसका कार्य पूर्ण हो चुका होता है। इनके अतिरिक्त प्रदेशत्व, वस्तुत्व, अस्तित्व आदि भी पारिणामिक गुण हैं, वे मुक्त जीवों में रहते हैं; किन्तु उनकी गणना इसलिये नहीं की गई कि यह गुण तो सभी द्रव्यों में,सामान्य है । अब यहाँ यह सहज जिज्ञासा उठ सकती है कि अन्यत्र तो मुक्त जीवों (सिद्धों) में आठ गुण (और कहीं अपेक्षा से ३१ गुण तथा सामान्य विवक्षा से अनन्त गुण कहे गये है- क्योंकि आत्मा में अनन्तगुण माने गए हैं) और सूत्र में सिर्फ चार का (केवलसम्यक्त्व, केवलज्ञान, केवलदर्शन और केवलसिद्धत्व) ही उल्लेख हुआ है । इस भेद का कारण क्या है? क्या अन्य गुण मुक्त जीवों में नहीं होते ? इस जिज्ञासा का समाधान यह है कि सूत्र में सक्षिप्त शैली का अनुगमन किया जाता है, अतः यहाँ चार प्रमुख गुण ही गिना दिये गये हैं । वैसे अनन्तवीर्य आदि गुणों का इन गुणों के साथ अविनाभावी संबंध होने से वे गुण भी मुक्त जीव में रहते हैं, उनका निषेध नहीं समझना चाहिए। ___ मुक्त जीवों (सिद्धों) के आठ प्रमुख गुण यह है (१) अनन्तज्ञान - यह ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय से प्रगट होता है। इससे वे सर्व द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव को जानते हैं ।। (२) अनन्तदर्शन - यह दर्शनावरणीय कर्म के क्षय से प्रगट होता है। इससे वे सम्पूर्ण द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव को देखते हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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