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दशवां अध्याय
मोक्ष
(SALVATION) उपोद्घात
प्रस्तुत दशवां अध्याय इस ग्रन्थ का अन्तिमौ अध्याय है अर आकार में पूर्व सभी अध्यायों से छोटा है। इसमें कुल सात सूत्र ही हैं ।
पिछले नौ अध्यायों में जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर और निर्जरा-इन छह तत्त्वों का वर्णन किया जा चुका है।
इस अन्तिम अध्याय में सूत्रकार ने अन्तिम- सातवें तत्त्व मोक्ष का विवेचन किया है और इसके साथ ही ग्रन्थ सम्पूर्ण कर दिया है ।
सर्वप्रथम मोक्ष तत्त्व का स्वरूप, मोक्षप्राप्ति के आधारभूत केवलज्ञान उसके प्रगट होने के कारण, मोक्षप्राप्ति में बाधक अन्य कारण, सभी बाधक कारणों के विनाश होने पर मुक्ति-प्राप्ति में बाधक अन्य कारण. सभी बाधक कारणों के विनाश होनेपर मुक्ति-प्राप्ति, मुक्त जीवों का ऊर्ध्वगमन निवासस्थान सिद्धशिला आदि का विवेचन प्रस्तुत हुआ है।
अन्तिम सूत्र में विभिन्न अपेक्षाओं मे सिद्ध जीवों के भेद भी गिनाये
. प्रस्तुत अध्याय का प्रारम्भ मोक्ष-प्राप्ति के आधारभूत केवलज्ञान प्रगटीकरण के क्रम से हुआ है। आगम वचन
खीणमोहस्स णं अरहओ ततो कम्मंसा जुगवं खिज्नति, तं जहा-णाणावरणिज्नं दंसणावरणिज्जं अतंरातियं ।।
- स्थानांग, स्थान ३, उ. ४, सू. २२६ तप्पढमयाए जाहुणुपुव्वीए अट्ठीवीसइविहं मोहणिजं कम्म उग्घाएइ, पंचविहं नाणावरणिज्जं नवविहं दंसणावरणिज्ज पंचविहं अन्तराइयं एण तिन्निवि कम्मं से जुगवं खवेइ । -उत्तरा. २९/७१
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