Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Kevalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Kamla Sadhanodaya Trust

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Page 466
________________ ४४२ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ९ : सूत्र ३६ होता । अतः यह स्वयं सिद्ध हो गया कि रौद्रध्यान पाँचवें देशविरत गुणस्थान वाले जीवों तक ही होता है ।) रौद्रध्यान के भेद और उसकी संभाव्यता - हिंसाऽनृततस्तेयाविषयसंरक्षणेभ्यों रौद्रमविरतदेशविरतयोः । ३६ । (१) हिंसा (२) अनृत (३) स्तेय और (४) (विषय) संरक्षण - इन चार की अपेक्षा से रौद्रध्यान चार प्रकार का है तथा यह अविरत और देशविरत (जीवों) में होता है । विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में रौद्रध्यान के भेद और यह ध्यान किन गुणस्थान वाले जीवों को हो सकता है, यह बताया है । रौद्र ध्यान के चार भेदों के नाम और लक्षण इस प्रकार है- (१) हिंसानुबन्धी - प्राणियों को मारने-पीटने, त्रास देने, वध करने, बन्धन में डालने आदि का विचार करना । (२) मृषानुबन्धी - झूठ बोलने, वाग्जाल में फँसाकर ठगी करने, अप्रिय-कठोर और पर को संतापित करने वाले मिथ्यावचनों का प्रयोग और वैसा विचार करना । (३) चौर्यानुबन्धी - चौरी, लूट-खसोट आदि के संबंध में विचार करना । (४) संरक्षणानुबन्धी - धन-धान्यादि परिग्रह की सुरक्षा के लिए व्याकुल रहना, उनकी सुरक्षा की चिन्ता करते रहना । __ 'अनुबन्धन शब्द जो रौद्रध्यान के चारों भेदों में आया है, इसका अभिप्राय है- आत्म-परिणामों की हिंसा आदि पापों में अतिशय लवलीनता, एक प्रकार का विशेष गठबन्धन जो सदा ही जीव के भावों को साथ लगा रहे। रौद्रध्यानी जीव के लक्षण - रौद्रध्यानी जीव को न पाप से डर लगता है और नही उसे परलोक की चिन्ता होती है, वह तो हिंसा आदि पापों में हर्ष मानता, है, अनुकम्पा का तो उसके हृदय में स्थान ही नहीं होता। ऐसा व्यक्ति घोर स्वार्थी होता है और पापों में-परिग्रह में रचा-पचा रहता है। सूत्र में जो रौद्रध्यान की संभाव्यता पाँचवें देशविरत गुणस्थान तक बताई है तो देशविरत गुणस्थान वाले जीव को यह कदाचित् होता है, अविरत सम्यक्त्वी को भी कभी-कभी ही संभव है । इसका कारण यह है कि रौद्रध्यान नरकायु का कारण है। और क्योंकि चौथे-पांचवें गुणस्थान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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