Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Kevalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Kamla Sadhanodaya Trust

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Page 475
________________ Jain Education International आभ्यन्तर तप (क) १. प्रायश्चित्त तप २. विनय तप ३ वैयावृत्य ४. स्वाध्याय ५. व्युत्सर्ग द्रव्य व्युत्सर्ग भावव्युत्सर्ग For Personal & Private Use Only आलोचनायोग्य प्रतिक्रमणयोग्य तदुभययोग्य विवेकयोग्य व्युत्सर्गयोग्य तपयोग्य छेदयोग्य मूलयोग्य (परिहारयोग्य) उपस्थापनयोग्य (अनवस्थायोग्य) पारांचित ज्ञानविनय दर्शनविनय चारित्रविनय लोकोपचारविनय मनविनय वचनविनय कालविनय आचार्य की वैयावृत्य उपाध्यय तपस्वी शैक्ष । ग्लान गण कुल संघ साधु (स्थविर) मनोज्ञ वाचना प्रच्छना अनुप्रेक्षा आम्नाय (परियट्टणा) धर्मोपदेश (धर्मकथा) शरीरव्युत्सर्ग गणव्युत्सर्ग उपधिव्युत्सर्ग भक्तपानव्युत्सर्ग कषायव्युत्सर्ग संसार " कर्म " संवर तथा निर्जरा ४५१ www.jainelibrary.org

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