Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Kevalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Kamla Sadhanodaya Trust

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Page 481
________________ संवर तथा निर्जरा ४५७ चारित्र की शबलता से युक्त होते हैं ।इनकी विशेषता शरीर और उपकरणों का संस्कार है । इस आधारपर इनके दो भेद हैं -(क) उपकरण बकुश और (ख) शरीर बकुश । (क) उपकरण बकुश - जो निर्ग्रन्थ अपने, उपकरणों को विभूषित करते है और (ख) शरीर बकुश -जो निर्ग्रन्थ अपने शरीर का संस्कार शोभा, आदि करते हैं । वास्तव में यहाँ बकुश शब्द शबल का पर्यायवाची है, जिसका अर्थ है- चित्र-विचित्र । बकुश निर्ग्रन्थ का चारित्र भी चित्र-विचित्र होता है । (३) कुशील - यह निर्ग्रन्थ दो प्रकार के होते हैं - (१) प्रतिसेवना कुशील (२) कषाय कुशील । (क) प्रतिसेवना कुशील - यद्यपि यह निर्ग्रन्थता का पालन तो अखण्ड रूप से करते हैं, मूलगुणों में दोष नहीं लगाते; किन्तु इनकी इन्द्रिया अनियत अर्थात् पूर्णरूप से वशवर्ती न होने से उत्तरगुणों में दोष लगा लेते (ख) कषाय सुशील - यह निर्ग्रन्थ यद्यपि कषायों पर विजय प्राप्त कर चुके होते है; किन्तु फिर भी इन्हें संज्वलन कषाय का कभी-कभी तीव्र आवेग आ जाता है। वैसे यह श्रमणाचार का अखण्ड रूप से पालन करने वाले होते हैं । (४) निर्ग्रन्थ - इनकी राग-द्वेष की ग्रन्थियाँ समाप्तप्राय होती है, कषायों का अत्यन्त अभाव होता है और अन्तर्मुहूर्त में इन्हें सर्वज्ञता प्राप्त हो जाती है। . (५) स्नातक - सर्वज्ञ केवली भगवान को स्नातक निर्ग्रन्थ कहा गया यद्यपि इन पाँच प्रकार के निर्ग्रन्थों में चारित्र की तरतमता की अपेक्षा भेद है किन्तु फिर भी नैगम, संग्रह नय की अपेक्षा ये सभी निर्ग्रन्थ कहलाते है । इन सभी की सामान्य संज्ञा 'निर्ग्रन्थ' है । अब इन पाँचों प्रकार के निर्ग्रन्थो की संयम, श्रुत आदि आठ विवक्षाओं से विशेषताओं का वर्णन किया जा रहा है (१) संयम - पुलाक, बकुश और प्रतिसेवना कुशील निर्ग्रन्थ सामायिक और छेदोपस्थापना-इन दो संयमों में रहते हैं । इन दो संयमों के अतिरिक्त कषायकुशील को परिहारविशुद्धि और सूक्ष्मसंपराय-यह दो संयम और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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