Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Kevalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Kamla Sadhanodaya Trust

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Page 470
________________ ४४६ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ९ : सूत्र ३९-४६ अन्तर (पलटना अथवा संक्रांति) है उसे पृथक्त्ववितर्क सविचार नाम का प्रथम शुक्लध्यान कहते हैं । यह राग रहित भाव वाले मुनियों के होता है।।१-२|| जो उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य आदि भंगों में से एक पर्याय मं अर्थ, व्यंजन और योग के अन्तर के विचाररहित निर्वात स्थान में दीपक के समान निष्कंप रहता है वह पूर्वगत श्रुतालम्बन रूप एकत्ववितर्क अविचार नाम का द्वितीय शुक्लध्यान है ॥३-४॥ __ - स्थानांगसूत्रवृत्ति, स्था. ४, उ. १, सूत्र २४७ शुक्लध्यान - स्वरूप, लक्षण, भेद और अधिकारीशुक्ले चाद्ये पूर्वविदः ।३९। परे केवलिनः ।४०। पृथक्त्वैकत्ववितर्क सूक्ष्मक्रि याप्रतिपातिव्युपरतक्रियानिवृत्तीनि ।४१। तत्त्र्येककाययोगायोगानाम् ।।२। एकाश्रये सवितर्के पूर्वे ।।३। अविचारं द्वितीयम् ।।४। वितर्क : श्रुतम् ।४५। विचारोऽर्थव्यंजन योगसंक्रांतिः । ४६। प्रारम्भ के दो (पृथक्त्ववितर्क सविचार और एकत्ववितर्क अविचार) शुक्लध्यान पूर्व के ज्ञाता को होते हैं । अगले दो (सूक्ष्मक्रिया अप्रतिपाती और व्युपरतक्रिया निवृत्ति) शुक्ल ध्यान केवली भगवान (सयोगिकेवली और अयोगिकेवली ) को होते है। शुक्लध्यान के चार प्रकार हैं - (१) पृथक्त्ववितर्क सविचार (२) एकत्ववितर्क अविचार (३) सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति और (४) व्युत्परतक्रिया निवृत्ति। वह शुक्लध्यान (भेदों के अनुसार क्रम से) तीन योग वाले, तीन में से किसी एक योग वाले, काययोग वाले और अयोगि (योग रहित ) को होता पहले के दो (शुक्लध्यान) एकाश्रित और सवितर्क होते है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org


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