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संवर तथा निर्जरा ४१५ छव्विहस्स बंधगस्स ... चोइस परीसहा पणत्ता,, बारस पुण वेदेइ ।
( छह प्रकार के (कर्म के) बंधकों को चौदह परीषह होते हैं. किन्तु एक काल मे वे वेदन बारह का ही कर सकते हैं । क्योंकि शीत-उष्ण में से एक का और चर्या-शय्या में से किसी एक का ही वेदन संभव है ।)
इसी प्रकार छद्मस्थ वीतराग को भी होता है।
एक्क विहबंधगस्स सजोगिभवत्थके वलिस्स एक्कारस परीसहा पण्णत्ता, नव पुण वेदेइ ।
सेसं जहा छव्विहबंधगस्स ।
(एक प्रकार के कर्मबंध वाले सयोगिभवस्थ केवलि के ११ परीषह कहे गये हैं, किन्तु एक समय में वेदन नौ (९) का ही होता है।
शेष छह प्रकार के बंधवाले के समान समझना चाहिए ।
अबधगस्स अजोगिभवत्थ केवलिस्स.. एक्कारस परीसहा पण्णत्ता नव पुण वेदेइ ।
___ - भगवती, श. ८, उ. ८, सू. ३४३ (अबंधक (बिना बन्ध वाले) केवलि के ११ परीषह कहे गये है किन्तु एक समय में वेदन नौ (९) का ही संभव है । परीषहों के अधिकारी, कारण और एक साथ संभाव्यता· सूक्ष्मसंपरायछद्मस्थवीतरागयोश्चतुर्दश ।१०। एकादशजिने ।११। बादरसंपराये सर्वे ।१२। ज्ञानावरणे प्रज्ञाज्ञाने. ।१३। दर्शनमोहान्तराययोरदर्शनालाभौ ।१४। चारित्रमोहे नाग्न्यारतिस्त्रीनिषद्याक्रोशयाचनासत्कार पुरस्काराः ।१५। वेदनीये शेषाः ।१६। एकादयोभाज्यायुगपदैकोनविंशते : ।१७। सूक्ष्म संपराय तथा छद्मस्थ वीतराग में चौदह परीषह होते हैं । | जिनेन्द्र भगवान को ग्यारह परीषह हो सकते हैं ) ज्ञानावरणकर्म के कारण प्रज्ञा और अज्ञान परीषह होते हैं।
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