Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Kevalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Kamla Sadhanodaya Trust

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Page 456
________________ ४३२ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ९ : सूत्र २४-२५ वैयावृत्त्य तप के भेदआचार्योपाध्यातपस्विशैक्षकग्लानगणकुलसंघसाधुमनोज्ञानाम् ।२४। ___ वैयावृत्य तप दस प्रकार का है. - (१) आचार्य (२) उपाध्याय (३) तपस्वी (४) शैक्ष (५) ग्लान (५) गण (७) कुल (८) संघ ९९) साधु और (१०) मनोज्ञ स्वधर्मी-इनकी सेवा, परिचर्या करना।) विवेचन - सेवा करने योग्य पुरुषों (साधकों) की अग्लान भाव से सेवा करना, उन्हें सुख साता पहुँचाना वैयावृत्यं तप है । . . सेवा करने योग्य साधक दस प्रकार के है, जिनके नाम सूत्र में गिनाए हैं; इसी अपेक्षा से वैयावृत्य तप के भी दस भेद है । १. आचार्य (संघ के नियंता, व्रत और आचार का सवयं पालन करने वाले तथा अनयों से पालन कराने वाले), २. उपाध्यय (श्रुत का अभ्यास कराने वाले) ३. तपस्वी (उग्र तप करने वाले ) ४. क्षैक्ष (नवदीक्षित साधु) ५. ग्लान (रोगी साधु) ६. गण (एक सम्पद्राय के साधु) ७. कुलं (गुरु भ्राता वृन्द) ८ संघ (जिनधर्म के अनुयायी साधु-साध्वी ९. प्रव्रज्याधारी साधु और १०. मनोज्ञ (स्वधर्मी) इन सबको आहार, पात्र आदि आवश्यक वस्तुएँ देनादिलाना, ज्ञानवृद्धि में सहयोग देना, पैर दबाना आदि सभी प्रकार से सुखसाता पहुँचाना, वैयावृत्य तप है । आगम में 'साधु' के स्थान पर 'स्थविर' शब्द आया है। स्थविर का अर्थ है जो साधु ज्ञान, आयु आदि में वृद्ध हों, दीर्घ दीक्षा पर्याय वाले हों। सूत्र में आगत 'साधु' शब्द से भी 'स्थविर' का अर्थ लेना चाहिए क्योंकि 'शैक्ष' यानीनवदीक्षित साधु का उल्लेख पृथक से हुआ है । फिर वृद्ध साधुओं को सेवा की अधिक आवश्यकता होती भी है। आगम वचन सज्झाए पंचविहे पण्णत्ते, तं जहावायणा पडिपुच्छणा परिअट्टणा अणुप्पेहा धम्मकहा । - भगवती श. २५, उ. ७, सू. २३६ (स्वाध्यायतप पाँच प्रकार का है- (१) वाचना (२) परिपृच्छना ९३) परिवर्तना (आम्नाय) (४) अनुप्रेक्षा और (५) धर्मकथा । स्वाध्यायतप के प्रकारवाचनाप्रच्छनानुप्रेक्षाम्नायधर्मोपदेशाः ।२५। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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