________________
४३८ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ९ : सूत्र २९-३० अट्टेझाणे, रोद्देझाणे, धम्मेझाणे सुव्के झाणे
- भगवती, श. २५, उ. ७, सूत्र २३७ ध्यान चार प्रकार के कहे गये हैं - (१) आर्तध्यान (२) रौद्रध्यान (३) धर्मध्यान और (४) शुक्लध्यान । ध्यान के भेद -
आदरौद्रधर्मशुक्लानि । २९। .
(ध्यान के चार भेद हैं - (१) आर्तध्यान (२) रौद्रध्यान (३) धर्मध्यान और (४) शुक्लध्यान ।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में चार प्रकार के ध्यान बताये है और उनके नाम भी गिनाये हैं- आर्त, रौद्र, धर्म और शुक्ल ।
- 'अर्ति' शब्द का अर्थ चिन्ता, पीड़ा, शोक, दुःख, कष्ट आदि है । इनके सम्बन्ध से जो ध्यान होता है, वह आर्तध्यान है ।
क्रोध, मान, माया, लोभ आदि कषायों से अतिरंजित जीव के क्रूर भाव रौद्र है और इनसे सम्बन्धित तथा इनमें हर्षित होने वाली चित्त की वृत्ति रौद्रध्यान कहलाती है ।
चित्त (मन) की जिस वृत्ति में शुद्ध धर्म की भावना का विच्छेद न पाय जाय, वह धर्मध्यान है ।
जिस चित्तवृत्ति के द्वारा कषायों का, कर्मों की क्षय हो, संसार का नाश हो, चतुर्गति मे परिभ्रमण समाप्त हो ऐसी आत्मपरिणति शुक्ल ध्यान है । आगम वचन -
धम्मुसुक्काइं झाणाइं झाणं तं तु बुहा वए । - उत्तरा, ३०/३५
(धर्म और शुक्ल ध्यान को बुद्धों ने ध्यान कहा है।) प्रशस्त और अप्रशस्त ध्यान -
परे मोक्षहेतु : ।३०। पर अर्थात् अन्त के दो ध्यान मोक्ष के कारण है।
विवेचन -अन्त के दो ध्यान है- धर्मध्यान और शुक्लध्यान । यह दोनों ध्यान मोक्ष के कारण है ।
- इस सूत्र से यह स्वयमेव फलित होता है कि प्रारम्भ के दो ध्यान आर्त और रौद्रध्यान संसार के हेतु-संसार बढ़ाने वाले हैं । आगम वचन
अट्टे झाणे चउविव्हे पण्णत्ते, तं जहा
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org