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संवर तथा निर्जरा ४२३ भी लक्ष्य हो, अपच आदि की दशा में भोजन-त्याग अनशन तो हैं; परन्तु अनशन तप नहीं है ।
__ समय सीमा की दृष्टि से अनशन तप के मुख्य भेद दो हैं -(१) इत्वरिक (काल की निशचित मर्यादा सहित) और (२) यावत्कथिक (जीवन भर के लिए किया जाने वाला अनशन) ।
इत्वरिक अनशन तप - सावकांक्ष भी कहलाता है, इसमें एक निश्चित समय पूरा होने के बाद भोजन-प्राप्ति की आकांक्षा अथवा इच्छा रहती है । प्रक्रिया की दृष्टि से इसके छह भेद हैं
(अ) श्रेणीतप- यह चतुर्थ भक्त (उपवास), षष्ठभक्त, (बेला-दो दिन का उपवास) अष्टमभक्त (तेला-तीन दिन का उपवास) से लेकर मासोपवास और षट्मासोपवास (छह महीने के उपवास) तक होता है ।
(ब) प्रतरतप - है यह भी अनशन तप किन्तु यह अंको के क्रमानुसार किया जाता है; उदाहरणार्थ १,२,३,४; २,३,४,१; ३,४,१,२; ४,१,२,३ आदि अर्थात् ४४४=१६ के कोष्ठक में अंक आकें, ऐसा तप ।
(स) घनतप - ८४८=६४ कोठों में अंक आवें एसा अनशन तप। (द) वर्गतप - ६४४६४=४०९६ कोठों में अंक आवें ऐसा अनशन
तप ।
(य) वर्गवर्गतप-४०९६४४०९६=१६७७२१६ कोठों में अंक आवें ऐसा तप ।
(र) प्रकीर्णकतप - इसके प्रमुख १३ प्रकार है -(१) कनकावली (२) रत्नावली (३) एकावली (४) मुक्तावली (५) बृहतसिंहनिष्क्रड़ित (६) लघुसिंहनिष्क्रीड़ित (७) गुणरत्नसंवत्सर (८) सर्वतोभद्र प्रतिमा (९) महाभद्र प्रतिमा (१) भद्र प्रतिमा (११) यवमध्यप्रतिमा (१२) वज्रमध्यप्रतिमा (१३) वर्धमान आयंबिल तप ।
इनको विस्तारपूर्वक समझने के लिए अन्तकृद्दसासूत्र देखना चाहिए।
यावत्कथिक अनशनतप- निरवकांक्ष तप है, क्योंकि इसमें भोजन की इच्छा ही नहीं रहती, इसमें जीवन भर के लिए आहार का त्याग कर दिया जाता है। साधारण भाषा में इसे संथारा भी कहते हैं । यह छह प्रकार का
है
(अ) भक्तप्रत्याख्यानतप - जीवन भर के लिए चारों प्रकार के आहार का त्याग ।
(ब) पादपोपगमनतप - जीवन भर के लिए आहार और शरीर का त्याग छिन्न वृक्ष की भाँति निश्चल-स्थिर हो जाना ।
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