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बन्ध तत्त्व ३८१ किन्तु यह धारणा पूर्ण सत्य नहीं है । एक ही माता-पिता के दो पुत्रों (यहाँ तक कि युगल पुत्रों) में एक रंग का गोरा और दूसरे का साँवला होता
है।
इंगलैंड आदि ठंडे देशों में भी सभी गोरे नहीं होते । कुछ के शरीर का रंग (Complexion) गोरा (whitish) होता है तो कुछ का गेहुंआ (wheatish) |
गोरे रंग में अनेक भेद हो जाते हैं; जैसे - खड़िया जैसा (egg white) सिन्दूर जैसा लालिमा लिये हुए गोरा (Redish white) आदि-आदि । कुछ प्रसिद्ध लोगों डिजरायली, पामर्स्टन, प्रसिद्ध कवि मिल्टन आदि का शरीर साँवले रंग का था । भैस यूरोप में भी काली ही होती है। इसी तरह पीले शरीर वाले मनुष्य भी बहुत होते हैं ।
अतः यह मानना अधिक उचित होगा कि शरीर का वर्ण तो वर्णनाम कर्म के द्वारा निश्चित होता है; किन्तु उसमें थोड़ा-बहुत परिवर्तन पर्यावरण से हो सकता है; किन्तु इतना निश्चित है कि शरीर का मूल वर्ण (Complexion) पूरी तरह नहीं बदल सकता । (४०-४४) ।
(१०) गंधनामकर्म - इसके उदय से जीव के शरीर से गंध निकलती रहती है | यह गंध दो प्रकार की होती है (१) सुरभि और (२) दुरभि अथवा खुशबू तथा बदबू । इस अपेक्षा से इस कर्म के भी दो भेद हैं - (१) सुरभिगंधनामकर्म - ऐसा शरीर जिसमें से केशर-कस्तूरी आदि जैसी सुगन्धि निकलती है और (२) दुरभिगन्धनामकर्म - इसमें से सड़े मांस आदि सी बदबू निकलती है ।
तरतमभाव की अपेक्षा गन्ध के भी अनेक भेद हो जाते हैं ।
इस तथ्य से आज का विज्ञान भी सहमत है । खोजी कुत्ते अपराधियों के शरीर से निकलने वाली गंध के आधार पर ही उसे खोज निकालते हैं । सुगन्धित क्रीम-पाउडर-स्नो आदि सौन्दर्य-प्रसाधनों के प्रयोग से बहुत सी स्त्रियां और पुरुष भी अपने शरीर से निकलती हुई बदबू को दबाकर शरीर कोसुगन्धित करने का प्रयास करते हैं। (४५-४६)
(११) रसनामकर्म - इसके उदय से शरीर विभिन्न प्रकार के रस से युक्त होता है । दूसरे शब्दों में यह कर्म शरीर के रस का निर्माण करता है । रस ५ हैं (१) तिक्त (काली मिर्च जैसा चरपरा) (२) कटु (नीम जैसा कड़वा) (३) कषाय (हरड़-बहेड़ा जैसे स्वाद वाला -कसायला) (४) अम्ल (नीबू, इमली जैसा खट्टा) और (५) मधुर (मिश्रीआदि जैसा मीठा)।
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