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३९४ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ८ : सूत्र १५-२१
नाम और गोत्र कर्म की उत्कृष्टस्थिति बीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम है । आयुष्य कर्म की उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम है 1 वेदनीय कर्म की (अपरा) जघन्य स्थिति बारह मुहूर्त है । नामगोत्र कर्म जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त है ।
शेष पांच कर्मों (ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय, अन्तराय और आयुष्य कर्म) की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त है ।
विवेचन - सूत्र १५ से २१ तक के सात सूत्रों में आठों मूल कर्मप्रकृतियों की उत्कृष्ट और जघन्य स्थिति बताई गई है ।
__उत्कृष्ट का अभिप्राय है अधिक से अधिक और जघन्य का अर्थ कम से कम है ।
उत्कृष्ट और जघन्य - यह वस्तु के अन्तिम (एक उस पार का और दूसरा इस पार का) दोनों छोर हैं । किन्तु इनके मध्य में असंख्यात भाग होते हैं, अर्थात् जीवों के भावों की तरतमता के अनुसार कर्मों की मध्यम स्थिति भी असंख्यात प्रकार की होती है ।
इतना ही नहीं, अन्तर्मूहुर्त (४८ मिनट से कम समय ) के ही असंख्यात भाग होते हैं । निगोदिया जीव एक श्वासोच्छ्वास मात्र में ही साढ़े सत्रह बार जन्म-मरण कर लेता है और अन्तर्मुहूर्त काल में ६५५३६ बार जन्म-मरण करता है।
मोहनीय, ज्ञानावरण, दर्शनावरण, और अन्तराय-इन चार घाती कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति संज्ञी पर्याप्त गर्भोत्पन्न मिथ्यादृष्टि मनुष्य को ही सम्भव है।
ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, नाम, गोत्र-इन छह कर्मों का जघन्य स्थितिबन्ध दसवें सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान में बन्ध होता है और मोहनीय का जघन्य स्थितिबन्ध नौवें अनिवृत्तिबादरसम्पराय गुणस्थान में होता है | यह सभी स्थितिबंध सम्यग्दृष्टि संयमी मुनि के होते हैं ।
आयुष्य कर्म का उत्कृष्ट स्थितिबंध मिथ्यात्वी मनुष्य भी कर सकता है और सम्यग्दृष्टि संयमी मुनि भी । मिथ्यात्वी करे तो सातवी नरक का बन्ध होता है और संयमी मुनि सर्वार्थसिद्ध विमान में जाता है । इन दोनों ही जगह उत्कृष्ट आयु है ।
आयुष्य की जघन्य स्थिति मनुष्य और तिर्यंचों में ही सम्भव है ।
स्थिति का अभिप्राय - स्थिति का अभिप्राय है कि बँधा हुआ कर्म कितने समय तक जीव के साथ सम्बद्ध रहेगा ? इसे अंग्रेजी शब्द duration
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