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बन्ध तत्त्व ३९३ सातावेदणिज्जस्स..जहन्नेण बारसमुहुत्ता ।
- प्रज्ञापना पद २३, उ. २, सूत्र २९३ जसोकित्तिनामएणं पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठमुहुत्ता उच्चगोयस्स पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठमुहुत्ता ।
- प्रज्ञापना पद २३, उ. २, सूत्र २९४ (ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय और अन्तराय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति तीस कोड़ाकोड़ी सागर और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहर्त की होती है। १९-२० ।
मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर और जघन्य स्थिति अन्तमुहूर्त की होती है ।२१।
नाम और गौत्र कर्म की उत्कृष्ट स्थिति बीस कोड़ीकोड़ी सागर और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की होती है ।२३।
आयु कर्म की उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागर और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की होती है ।२२।
सातावेदनीय की जघन्य स्थिति बारह मुहूर्त होती है ।
हे गौतम ! यशःकीर्तिनामकर्म की जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त की होती है और उच्च गोत्रकर्म की जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त की होती है।) 31 of 4f $ preifa (duration)
____ आदितस्तिसृणामन्तरायस्य च त्रिंशत्सागरोपमकोटीकोट्यः परास्थितिः । १५।
सप्तर्तिमोहनीयस्य ।१६। नामगोत्रयोंर्विशतिः । १७ । त्रयस्त्रिंशत् सागरोपमाण्यायुष्कस्य ।१८। अपरा द्वादशमुहूर्ता वेदनीयस्य ।१९। नामगोत्रयोरष्टौ ।२०। शेषाणामन्तर्मुहूर्तम् ।२१।
आदि के तीन अर्थात् ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तराय इन चार कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम है । " मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरोपम है ।
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