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नौवां अध्याय
संवर तथा निर्जरा (CHECK AND ANNIHILATIN OF KARMA-PRTICLES) उपोद्घात
पिछले आठवें अध्याय में बंध तत्त्व का वर्णन किया जा चुका है। प्रस्तुत नौवें अध्याय में संवर और निर्जरा इन दो तत्त्वों का विवेचन किया जा रहा है ।
यद्यपि संवर तत्त्व का वर्णन पिछले सातवें अध्याय में भी किया जा चुका है; किन्तु वह सिर्फ विरति-संवर था, उसे अपेक्षा से आंशिक संवर भी कहा जाता है ।
प्रस्तुत अध्याय में संवर का सर्वांगीण विवेचन प्रस्तुत किया गया है। ___ संवर का वर्णन करते हुए पाँच समिति, तीन गुप्ति, दस उत्तम धर्म, बारह वैराग्य भावना, बाईस परीषहजय आदि संवर के साधन-उपायों/भेदों का भी विवेचन है ।
तदनन्तर निर्जरा के साधनभूत बारह प्रकार का तप, चांरो प्रकार के ध्यान तथा विभिन्न साधकों की अपेक्षा निर्जरा के तरतमभाव आदि विषयों का विवेचन इस अध्याय में प्राप्त होता है। ध्यान-तप का वर्णन विशेष विस्तार के साथ किया गया है, इसका कारण यह है कि ध्यान निर्जरा अत्यधिक प्रभावी हेतु और मोक्ष-प्राप्ति का प्रत्यक्ष साधन है ।
प्रस्तुत अध्याय का प्रारम्भ संवर लक्षण से होता है। आगम वचननिरुद्धासवे संवरो ।
- उत्तरा २९/११ समिई गत्ती धम्मो अणुपेह परीसह चरित्तं च। सत्तावन्नं भेया पणतिगभेयाई संवरणे ॥ - स्थानांगवृत्ति, स्थान१ तवसा निजरिजइ ।
- उत्तरा. ३०/६
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